भोपाल

जब मुख्यमंत्री का पजामा लेने उड़ा था सरकारी विमान, इंदिरा गांधी के थे करीबी

पालिटिकल किस्से की श्रंखला में patrika.com आपको बता रहा है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का एक दिलचस्प किस्सा…।

भोपालOct 19, 2020 / 06:51 pm

Manish Gite

भोपाल। मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव ( mp by election ) होने वाले हैं। यह देश का अब तक का सबसे बड़ा उपचुनाव माना जा रहा है। राजनीतिक दल चुनाव-प्रचार में व्यस्त हो गए हैं। चुनावी मौसम में राजनीतिक गलियारों में राजनेताओं के किस्सों की भी कमी नहीं हैं।

 

patrika.com ऐसा ही एक मजेदार किस्सा आपको बता रहा है.. जो आज भी चर्चित है…।

दिलचस्प किस्सा

प्रकाशचंद्र सेठी का एक किस्सा आज भी चर्चित है। एक आईएएस अफसर की किताब में इसका जिक्र मिलता है। बात उस दौर की है, जब गुलाम नबी आजाद की शादी थी और प्रकाशचंद्र सेठी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। गुलाम नबी की शादी में शरीक होने के लिए देशभर से दिग्गज नेता श्रीनगर पहुंच गए थे। किताब के मुताबिक मुख्यमंत्री रहते हुए सेठीजी गुलाम नबी की शादी में शामिल होने सरकारी हवाई जहाज से श्रीनगर गए थे। तय कार्यक्रम के अनुसार वे रात को ही शादी अटेंड करने के बाद भोपाल लौटना चाहते थे, लेकिन कुछ ऐसी स्थिति बन गई कि सठी जी को रात श्रीनगर में ही रुकना पड़ गया। उन्होंने भी वहीं रुकने का फैसला ले लिया। शाम को मुख्यमंत्री को याद आया कि रात में पहनने के लिए उनका पाजामा तो है ही नहीं। उसके बगैर वे सो भी नहीं पाते थे। इसके बाद उन्होंने अपने स्टाफ को यह बात बताई। और सरकारी विमान को पायजामा लेने के लिए करीब 1600 किलोमीटर दूर भोपाल भेज दिया। जानकार बताते हैं कि वमान से उनका पायजामा रात करीब साढ़े 9 बजे श्रीनगर पहुंच गया, जिसके बाद सेठीजी ने वो पायजामा पहना और सोने चले गए। आज सेठीजी इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका यह किस्सा राजनीतिक गलियारों में आज भी मशहूर हैं।

Indira Gandhi

 

दूसरा किस्साः किसी ने नहीं बजाई ताली

यह किस्सा ऐसे नेता का है जिन्हें खुद इंदिरा गांधी ( indira gandhi ) ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था। कई नेता अपने नाम मुख्यमंत्री ( cm ) के लिए घोषित होने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन, किसी ने नहीं सोचा था कि अचानक इंदिरा गांधी ने जिस शख्स का नाम लिया, उससे सभी हैरान रह गए। यह नाम था प्रकाश चंद्र सेठी का। इंदिरा गांधी के मुंह से यह घोषणा सुन एक भी विधायक ने खुशी जाहिर नहीं की, यहां तक कि तालियां भी नहीं बजाई गईं। लेकिन, प्रकाशचंद्र सेठी मुख्यमंत्री ( chief minister prakash chand sethi ) बन गए।

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तीसरा किस्साः उज्जैन में थे, तभी खुलने लगी थी किस्मत

बात उस दौर की है जब सेठीजी का शुरुआती दौर था। नगर पालिका अध्यक्ष से करियर शुरू ही हुआ था। राज्यसभा सांसद त्रियंबक दामोदर पुस्तके का निधन हो गया था। तब उपचुनाव में प्रत्याशी की तलाश हुई। विंध्यप्रदेश के कद्दावर नेता अवधेश प्रताप सिंह का दौर था। किसी नेता को राज्यसभा भेजना था। उस दौर में कांग्रेस एक नेता को दो बार राज्यसभा नहीं भेजती थी। इसलिए अवधेश प्रताप सिंह का नाम कट गया और किस्मत खुली सेठीजी की। सेठी जी दिल्ली क्या गए, नेहरू सरकार में उपमंत्री भी बन गए। सेठीजी बड़े नेताओं के करीब होते गए चाहे शास्त्री हो या इंदिरा, सेठीजी हर पीएम के खास रहे।

 

 

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चौथा किस्साः डकैतों पर करना चाहते थे बम बारिश

पीसी सेठीजी के कार्यकाल के दौरान मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड वाले इलाकों में उस समय डाकुओं का आतंक था। सेठीजी डकैत समस्या का हल करने के प्रयासों में लगे रहते थे। लेकिन वे इसे गांधीवादी तरीके से नहीं चाहते थे। गृह विभाग के बड़े अधिकारियों से जब उनकी मीटिंग हुई तो उनकी एक लाइन के प्रस्ताव से वहां सन्नाटा पसर गया। सेठी ने कहा- डकैतों के छिपने के इलाकों में (बीहड़ में) भारतीय वायुसेना बम गिरा दे, टंटा ही खत्म हो जाएगा। नगरीय इलाकों में वायुसेना की तरफ से बम बारिश का ऐसा प्रस्ताव सुन अधिकारी सन्न रह गए थे। लेकिन, पीसी सेठी नहीं माने। दिल्ली के नॉर्थ ब्लाक से साउथ ब्लॉक पहुंचे और रक्षामंत्री जगजीवन राम के दफ्तर पहुंच गए। बाबूजी को कुछ कहा और मुस्कुराते हुए परमिशन ही ले आए। दूसरे ही दिन एयरफोर्स के हेड आफिस में आपरेशन की तैयारी शुरू हो गई। सेठीजी भी भोपाल पहुंच गए। लेकिन कुछ दिन पहले समाचार पत्रों में इसकी खबर लीक हो गई, डकैतों तक खबरें पहुंच गईं। उनमें से आधे डकैत को घबराकर सरेंडर के लिए बातचीत करने लगे। बाकी आधे डकैत तो भागने की तैयारी करने लगे। सरकारी रिकार्ड बताते हैं कि उस दौर में 450 डकैत मुख्यधारा में लौट आए। जानकार बताते हैं कि बम बारिश की खबर सेठीजी के दफ्तर से ही लीक हुई थी, हालांकि यह सब बातें ही हैं।

सुमित्रा महाजन से हार गए थे चुनाव

सेठी को 1989 में इंदौर की लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया था, लेकिन वे सुमित्रा महाजन से बुरी तरह चुनाव हार गए थे। इसके बाद वे धीरे-धीरे राजनीतिक से अलग रहने लगे। 1996 में प्रकाशचंद्र सेठी का निधन हो गया था।

प्रकाशचंद्र सेठी एक परिचय: एक नजर

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