कृषि कानून लागू होने से पहले तक ए-ग्रेड के कारोबारी 50 मिट्रिक टन ही एक तरह के अनाज का स्टॉक कर सकते थे। अनाज भंडारण की लिमिट समाप्त कर दी थी। अब किसान पहले की तरह मंडी में पूर्व की तरह अनाज लेकर आएगा, जो व्यापारी ज्यादा भाव देगा उसे वह माल बेचेगा। किसानों को उनके अनाज का पूरा पैसा दिलाने देने की जिम्मेदारी मंडी की होगी। कानून लागू रहने के दौरान अगर कारोबारी किसान का पैसा लेकर गायब हो गया, तो किसानों को उसको खोजना पड़ता था।
इस संबंध में मध्य प्रदेश राज्य कृषि विपणन (मंडी ) बोर्ड के एमडी विकास नरवाल के अनुसार मध्यप्रदेश में मंडियां पूर्व की तरह अपना कारोबार कर रही हैं। मंडियों में किसानों को किसी तरह की दिक्कतें न हो, इसकी पूरी व्यवस्थाएं की जा रही हैं।
मध्य प्रदेश सरकार ने इस कानून पांच जून 2020 को लागू किया था। सुप्रीम कोर्ट में स्टे होने के बाद सरकार ने 12 जनवरी 2021 को इस कानून पर रोक लगाते हुए पुरानी व्यवस्था बहाल कर दी थी, जो अभी तक लागू है। इससे मध्य प्रदेश के मंडियों की हालत खराब हो गई। जहां मंडियों को अनाज कारोबार के टैक्स से 12 सौ करोड़ रूपए मिलते थे, वहीं इस कृषि कानून से मंडियों की आय 600 करोड़ रूपए से भी कम हो गई।
प्रदेश में 259 मंडियां हैं। कानून लागू होने को लेकर इनका कारोबार और अनाज की आवक कम हो गयी थी। डेढ़ सौ मंडियों में कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ गए। किसान और मंडी कारोबारियों को लगने लगा था कि कानून लागू होने से ये मंडियां निजी कंपनियों के हाथों में चली जाएगी। अब केन्द्र सरकार के फैसले से इन मंडियों में कर्मचारियों और किसानों में एक नहीं ऊर्जा पैदा हुई है।