औषधियों के प्रसंस्कण करने के लिए बनाए गए ज्यादातर केन्द्र बंद हैं। कई केन्द्र तो ऐसे हैं, जिसमें पांच लाख का भी काम नहीं हो पा रहा है। उचित दाम नहीं मिलने के करण समितियां इन प्रसंस्करण केन्द्रों को ओषधीय, जड़ी-बूटी देने के बजाय निजी कंपनियों को बेंच देंगे हैं। औषधि प्रसंस्करण संचालक समितियों को अपने साथ जोड़ नहीं पा रहे हैं, जिसके चलते उन्हें कच्चा माल नहीं मिल पा रहा है।
इसके कारण करीब चार से पांच केन्द्र बंद होने की कगार पर आ गए हैं। केन्द्र बंद होने और निजी कंपनियों तक पकड़ नहीं होने से कई समितियों के सामने आजीविकास का संकट खड़ा हो गया है।
निजी हाथों में सांैपने की तैयारी
सरकार 28 औषधि प्रसंस्करण केन्द्रों में से 25 केन्द्रों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। इन केन्द्रों को संचालित करने के लिए जिनी कंपनियों और दवा बनाने वाली कंपनियों से भी बात की की जा रही है। जिससे समितियों को औषधि बेंचने के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़े। इसके साथ ही इन प्रसंस्करण केन्द्र से सरकार को सालाना राजस्व आया भी मिलती रहे।
तीन केन्द्रों से 35 करोड़ टर्नओवर
भोपाल सहित तीन औषधि प्रसंस्करण केन्द्र का करीब 35 करोड़ टर्न ओवर है। इन केन्द्रों से सबसे ज्यादा दवा सप्लाई आयुष विभाग में होती है। इसे प्रसंस्करण केन्द्र की और यूनिट बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। जबकि तत्कालीन वन मंत्री राजन्द्र शुक्ल ने इसी तर्ज पर रीवा में औषधि प्रसंस्करण केन्द्र बनाए थे, लेकिन उसकी शुरूआत ही नहीं हो पाई। इसको बनाने और मशीन रखीदी करने वाले अधिकारियों की जांच अलग से शुरू हो गई।
बाहर से दवाएं ले रहा है आयुष विभाग
वन विकास निगम आयुष विभाग को पूरी दवा सप्लाई नहीं कर पा रहा है। इसके चलते कई दवाइयां विभाग निजी कंपनियों से खरीद रहा है। आयुष विभाग प्रत्येक वर्ष सौ कराड़ रूपए की अधिक की आयुर्वेदिक दवाएं खरीदता है, जिसमें महज ३० करोड़ की ही दवा विभाग को दे पाता है।
इन जिलों में प्रस्करण यूनिट
सीहोर, बालाघाट, कटनी, पन्ना, बैतूल, छतरपुर, छिंदवाड़ा, श्योपुर, अनूपपुर, मंडला, नरसिंहपुर, सिवनी, खंडवा, देवास, रीवा, खरगोन, सीधी, भोपाल शामिल है। कई जिलों में खाद्य प्रसंस्करण के दो से तीन यूनिट लगाई गई हैं।
वर्जन औषधि प्रसंस्करण निजी हाथों में देने की तैयारी
कई औषधि प्रसंस्करण क्षेत्र बंद हैं। उन्हें चालू करने के प्रया किए जा रहे है। इन केन्द्रों को संचालित करने के लिए समितियों को आफर दिया था, लेकिन समितियां आगे नहीं आ रही हैं। अब इनके संचालन के लिए खुली निविदा जारी की जाएगी। – एसके मंडल, प्रबंध संचालक, मप्र लघुवनोपज संघ