लोक निर्माण विभाग में तीस मीटर से अधिक लंबे पुल-पुलिया की लाइफ लाइन का परीक्षण कराने का हर 6-6 माह में प्रावधान है। इसके लिए पीडब्ल्यूडी में करोड़ों रूपए की मशीन भी वर्षों से खड़ी हुई है, इसके बाद भी इन पुलों और बिजों की जांच पड़ताल नहीं की जा रही है।
इसके रख-रखाव और जांच के लिए सरकार ने एक अलग से प्रदेश स्तर पर सेतु इकाई भी बना रखी है, लेकिन इनके द्वारा भी किसी पुल की वार्षिक रिपोर्ट नहीं तैयार की जा रही है। पुलों के लाइफ लाइन का परीक्षण के लिए करोड़ों रूपए की राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय ने द्वारा 10 साल पहले दी गई थी।
पुलों की जांच के लिए ईएनसी द्वारा सेतु बिंग को करीब एक दर्जन से अधिक पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन आज तक एक भी पुल-की जांच रिपोर्ट नहीं तैयार की गई है। इस मामले में विभाग के मैदानी इंजीनियर रूचि इसलिए भी नहीं लेते हैं क्योंकि इनकी मरम्मत तथा रख-रखाव के लिए कोई बजट भी नहीं दिया जाता है।
प्रदेश में 30 मीटर से ऊपर के राजधानी में चार और पूरे प्रदेश में 400 के आस-पास पुल हैं। इनमें से करीब 25 फीसदी पुल तीस साल पुराने हैं। सूत्रों के अनुसार 70 से अधिक पुल काफी जर्जर हो चुके हैं।
केस -1. झाबुआ जिले में एक साल पहले पुल गिर गया था। निरीक्षण रिपोर्ट में पुल को ठीक और मजबूत बताया गया था। पुल गिरने के बाद इसकी जांच की गई थी, रिपोर्ट में यह सामने आया कि उक्त पुल की स्थिति की जांच-पड़ताल इंजीनियरों ने कभी नहीं की।
केस-2. राजधानी के भारत टाकीज स्थित ब्रिज का छज्जा डेढ़ साल पिछले साल गिरा था। इसके बाद लोक निर्माण विभाग और नगर निगम के बीच इस बात की लड़ाई शुरू होई थी कि इस ब्रिज के सुरक्षा और देख-भाल की जिम्मेदारी किसके पास है। लोक निर्माण विभाग का कहना था कि ब्रिज में खम्भे और पाइप लगाने से ब्रिज का छज्जा कमजोर होकर गिरा है।
केस-3. इंदौर में दो साल पहले निर्माणाधीन ब्रिज का स्लैब गिर गया था। इस मामले में जांच में अधिकारियों ने यह बताया कि स्लैब ढलाई के बाद रात में सेंट्रिंग में ट्रक ने टक्कर मार दिया था, जिससे पूरा ब्रिज ही गिर गया। सवाल यह पैदा होता है कि निर्माणाधीन ब्रिज के पास ट्रक कैसे पहुंचा।
केस-4. लोक निर्माण विभाग ने हाल ही में सतना जिल के एक ब्रिज को क्षतिग्रस्त घोषित कर दिया है, इसके बाद भी इस ब्रिज से वाहन और लोग निकल रहे हैं, क्योंकि इसमे पूरी तरह से बंद नहीं किया गया है।
मेरे पास पुलों की वर्तमान स्थिति के संबंध में जांच रिपोर्ट नहीं है। पुलों की जांच के लिए सेतु इकाई को करीब एक दर्जन से अधिक पत्र दे चुके हैं, लेकिन अधिकारी पुलों की जांच नहीं कर रहे हैं। इसकी जांच के लिए विभाग के पास मशीन भी है।
-अखिलेश अग्रवाल, ईएनसी लोक निर्माण विभाग
चीफ इंजीनियर सेतु इकाई अखिलेश उपाध्यय का कहना है कि 60 मीटर से ज्यादा लंबे सभी पुलों की स्थिति ठीक है। अगर स्थति ठीक नहीं होती तो मैदानी इंजीनियर इसकी रिपोर्ट देते, इससे कम लंबाई के पुलों के देख-रेख और उनके मेंटिनेंस की जिम्मेदारी संबंधित परिक्षेत्र के चीफ इंजीनियरों की है।