उन्होंने कहा है कि रात में निर्धारित संख्या में यात्री नहीं मिलने से यह घाटा होना तय है। आपरेटरों ने नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग को बताया है कि यात्रियों से सिर्फ 3 रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से ही किराया वसूल हो पाएगा।
कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में यात्रियों की सुविधा के लिए रात्रिकालिन बस चलाने का वादा किया था। इसमें पहले चरण में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, और उज्जैन में रात 10 से सुबह 6 बजे तक रात्रिकालिन बस चलाई जाना थीं। हाल ही में नगरीय प्रशासन विभाग ने इन शहरों में 4-4 मिडी बसे चलाने के प्रस्ताव तैयार कर अपरेटरों से बैठक की। आपरेटरों से फीड बैक लिया कि वे रात्रिकालीन बस कितने रुपए में चला सकते हैं, रात्रिकालीन बसों के लिए यात्रियों की क्या स्थिति रहेगी।
आपरेटरों ने इन पांचों शहरों में अपने स्तर पर सर्वे कराया। आपरेटरों ने सर्वे रिपोर्ट में आए परिणाम को विभाग के अधिकारियों से साझा करते हुए बताया कि शहरों में 35 से 40 रुपए प्रति किलोमीटर बस चलाया जा सकता है। यात्रियों से इस किराया की भरपाई भोपाल, इंदौर में सिर्फ 5 रुपए, जबकि अन्य शहरों में ३ रुपए प्रति प्रति किलोमीटर ही हो पाएगी। इसके बाद अंतर की राशि, 30 से 35 रुपए, सरकार को देना होगा।
एक बस को रात में 200 किमी चलाने का था प्रस्ताव
वचन पत्र के हिसाब से विभाग ने जो प्रस्ताव तैयार किया है उसके हिसाब से एक बस को रात में तकरीबन 200 किलोमीटर चलाया जाना है। इन्हें बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और नए और पुराने शहरों में चलाया जाना है, जहां यात्रियों की संख्या अधिक है। इन बसों के रूटों से अस्पतालों, मॉल, शॉपिंग काम्प्लेक्श, धार्मिक, मनोरंजन स्थल और बड़े बाजारों शामिल किया गया है। जिससे यात्रियों को रात में सफर करने में किसी तरह से दिक्कतों का समान न करना पड़े। इसके बावजूद बस ऑपरेटर का मानना है कि रात में यात्री नहीं मिलेंगे।
वित्त विभाग के पास जाएगा प्रस्ताव
नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग रात्रिकालीन बस लाने का प्रस्ताव वित्त विभाग भेजने की तैयारी कर रहा है। विभाग ने सरकार को बताया है कि प्रत्येक शहर में चार बस एक साल तक चलाने पर करीब एक करोड़ रूपए प्रति वर्ष खर्च होना है। इसके चलते पांचों शहरों में करीब चार से पांच करोड़ रुपए हर साल खर्च होना है। बस का 95 फीसदी किराया सरकार को खुद हर माह आपरेटरों को देना पड़ेगा।
परिवहन के पास सिर्फ पांच करोड़ का बजट
नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग में परिवहन के लिए सिर्फ पांच करोड़ का बजट है। इसी बजट में परिवहन शाखा का स्थापना खर्च और नगरीय निकायों को भी इसी राशि से बस स्टैड पार्किंग सहित अन्य खर्च देना है। इसके चलते इन बसों का खर्च उठाने में विभाग समर्थ नहीं है। बस चलाने के लिए सरकार को अलग से बजट में प्रावधान करना पड़ेगा। इसके चलते सरकार मंत्रिमंडल के समक्ष इस प्रस्ताव पर चर्चा करने के बाद निर्णय लेगी।