मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों में जहां ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत है वहां सेंट्रल ऑक्सीजन प्लांट लगे हुए हैं। जबकि अधिकांश जिला अस्पतालों में अभी भी सिलेंडरों के माध्यम से ही सप्लाई की जाती है। कई बार भुगतान नहीं होने पर कंपनियां सप्लाई रोक देती हैं।एेसी स्थिति में अब अस्पताल प्रशासन अपने स्तर पर औषधि मद से या लोकल पर्चेज के माध्यम से तत्काल ऑक्सीजन खरीद सकेंगे।
लाइनों के लीकेज पर ध्यान नहीं :
ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था भले ही दरुस्त हो जाए, लेकिन इसकी लाइनों में लीकेज भी एक बड़ी समस्या है। इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जबकि जून 2017 में इंदौर के एमवाय अस्पताल में ऑक्सीजन लाइन में लीकेज के कारण आधा दर्जन नवजातों की जान जा चुकी है।
इंदौर हादसे के बाद जब पत्रिका रिपोर्टर ने हमीदिया अस्पताल के ऑक्सीजन सप्लाई सिस्टम का जायजा लिया था तो कमला नेहरू में लगे ऑक्सीजन सिस्टम के बाहर तो ताला लगा था। हमीदिया परिसर में भी कोई तकनीकी कर्मचारी मौजूद नहीं था।
हमीदिया अस्पताल के डॉक्टरों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ऑक्सीजन लाइन में सबसे ज्यादा लीकेज मेडिकल वार्ड 2, पीआईसीयू, एनआईसीयू और आईसीयू में होते हैं, क्योंकि इन वार्डों में वेंटिलेटर का उपयोग ज्यादा होता है। इस कारण गैस लाइन के आउटलेट में बार-बार खराबी आ जाती है। इसे ठीक करने में एक से ५ घंटे तक का समय लग जाता है। तब तक वार्डों में पोर्टेबल सिलेंडरों से मरीजों को ऑक्सीजन दी जाती है, लेकिन ज्यादा देर तक सप्लाई नहीं सुधरने पर यह भी खत्म हो जाते हैं।
हाल ए हमीदिया:
1500 : प्रतिदिन औसतन ओपीडी ।
700 : औसतन भर्ती मरीज ।
150 : क्रिटिकल कंडीशन वाले मरीज।