1957 में आई रानी रूपमति ने उन्हें एक अलग पहचान दी। ऐतिहासिक नगरी मांडू के बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेम कहानी पर आधारित इस फिल्म ने कई रिकार्ड तोड़ दिए।
इसके गाने आज भी लोगों को सुकून देते हैं। सबसे ज्यादा चर्चित गाना आ अब लौट के आजा मेरे मीत काफी चर्चित रहा और लोगों ने सुकून का अहसास किया।
आज भी गाया जाता है यह गीत
मध्य प्रदेश का एक ऐसा पर्यटन स्थल है माण्डू, जो रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर के अमर प्रेम का साक्षी बना है। यहां आज भी उनकी प्रेम गाथाओं के किस्से सुनाए जाते हैं। फिल्म रानी रूपमति का गीत भी रोज ही यहां आने वाले पर्यटकों को सुनाया जाता है।
इतिहासकारों के अनुसार रानी रूपमती को बाज बहादुर इतना प्यार करते थे कि रानी उनके बिना कुछ कहे ही वो उनके दिल की बात समझ जाया करते थे। बाज बहादुर और रानी रूपमती के प्यार के साक्षी मांडू में 3500 फीट की ऊंचाई पर बना रानी रुपमती का महल है। कहते हैं कि रानी नर्मदा नदी का दर्शन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करती थी। रानी की इसी इच्छा को पूरा करने के लिए बाज बहादुर ने एक किले का निर्माण कराया था, जिसे लोग रानी रूपमती के महल के नाम से जानते हैं। रानी यहां से 100 किलोमीटर दूर बहती नर्मदा नदी का दर्शन करती थी।
और बन गई अमिताभ की फिल्मी मां
हिन्दी सिनेमा जगत में निरुपा को एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में याद किया जाता है, जिसने पर्दे पर कई अभिनेताओं की मां का किरदार निभाया। उनका मूल नाम कोकिला बेन था। 1961 में छाया में उन्होंने माँ की भूमिका निभाई। उन्होंने आशा पारेख की माँ की भूमिका निभाई थीं। इस फ़िल्म में उन्हें मां के किरदार के लिए सराहना मिली। उन्हें फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार भी मिला। सन 1975 में दीवार निरुपा के केरियर की सबसे अहम फिल्म साबित हुई और बिग बी के लिए भी। इस फ़िल्म में उन्होंने शशि कपूर और अमिताभ बच्चन की माँ की भूमिका निभाई। यह फिल्म आज भी याद की जाती है। इसके बाद खून पसीना , मुकद्दर का सिकंदर , अमर अकबर एंथॉनी , सुहाग , इंकलाब , गिरफ्तार , मर्द और गंगा जमुना सरस्वती जैसी फ़िल्मों में बिग-बी की मां की भूमिका में नजर आईं। वर्ष 1999 में लाल बादशाह में वह अंतिम बार बिग-बी के साथ दिखी। 4 जनवरी, 1931 को गुजरात के बलसाड़ में जन्मी निरुपा का 13 अक्टूबर 2004 को निधन हो गया। रॉय ने पांच दशकों में करीब 300 फिल्मों में काम किया।
निरुपा को तीन बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार मिला। 1956 की फ़िल्म मुनीम जी के लिए यह पुरस्कार मिला था, जिसमें निरुपा देवानंद की माँ बनी थीं। 1962 की फ़िल्म छाया के लिए भी उन्हें पुरस्कृत किया गया। बाद में शहनाई के लिए 1965 में सम्मानित किया गया।