भोपाल

प्रदेश के सियासी इतिहास का सबसे बड़ा उपचुनाव: दांव पर लगा इनका कैरियर, कुछ का डूबेगा तो किसी की पार लगेगी नैया

मध्यप्रदेश में पहली बार एक साथ इतने सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं।
मध्यप्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है।

भोपालSep 29, 2020 / 07:33 am

Pawan Tiwari

प्रदेश के सियासी इतिहास का सबसे बड़ा उपचुनाव: दांव पर लगा इनका कैरियर, कुछ का डूबेगा तो किसी की पार लगेगी नैया

भोपाल. प्रदेश के सियासी इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा उपचुनाव कई राजनेताओं का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। इस चुनाव में नेताओं की साख का सवाल तो है ही, उनके राजनीतिक भविष्य की दिशा भी तय होगी। भाजपा की सरकार स्थिर करने और कांग्रेस के लिए वापसी का मौका लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका में है। जानिए, यह उपचुनाव के राजनेताओं के लिए कितने नफे और नुकसान का सबब बनेंगे।
शिवराज सिंह चौहान: कंधों पर टिका है पूरा चुनाव
सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए यह चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हीं का चेहरा सबसे आगे हैं। चौथी बार के सीएम हैं और पूरा चुनाव उनके कंधों पर टिका है। पिछले विधानसभा चुनाव में शिवराज के चेहरे के कारण ही भाजपा कांग्रेस से करीबी वोटों तक पहुंच गई थी। बावजूद इसके हार हुई। अब वापस उपचुनाव भाजपा की सरकार को मजबूती प्रदान कर सकते हैं। ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर भाजपा का जोर है। भाजपा यदि ज्यादा सीटें जीतती है, तो शिवराज और मजबूत होंगे। उनकी चौथी पारी और सफल मानी जाएगी। यदि सीटें कम रहती हैं या बुरी तरह हार होती है, तो यह शिवराज के चेहरे का करिश्मा खत्म होना भी माना जा सकता है।
कमलनाथ: साबित होगा टर्निंग पॉइंट
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के राजनीतिक कॅरियर के लिए यह उपचुनाव बड़ा टर्निंग पॉइंट है। कमलनाथ, सिंधिया और बागी विधायकों को गद्दार कहकर सत्ता में वापसी की लड़ाई लड़ रहे हैं। अपने शासनकाल में शुरू की गईं योजनाओं को गिना रहे हैं। यदि कांग्रेस इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतती है, तो यह कमलनाथ के नेतृत्व और कांग्रेस के वापस सरकार में आने के रास्ते खोलने पर जनता की मुहर होगी। यदि कांग्रेस उपचुनाव हारती है तो यह कमलनाथ के साख पर सत्ता गिरने के बाद दूसरा बड़ा दाग होगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह ही कमलनाथ के लिए भी यह चुनाव साख का सवाल है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया
राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पूरे चुनाव में अहम फैक्टर हैं। सिंधिया ही समर्थकों के साथ कांग्रेस सरकार गिराकर भाजपा को सत्ता में लाए। सिंधिया के कंधों पर ग्वालियर-चंबल की सीटें जिताने के साथ ही बाकी जगहों पर भी जीत दर्ज कराने की जिम्मेदारी है। सिंधिया की साख दांव पर है। यदि भाजपा चुनाव हारती है या बहुत कम सीटें लाती है, तो इसे सिंधिया के साथ जोड़ा जाएगा। सिंधिया द्वारा सरकार गिराना भाजपा की हार की सूरत में गलत माना जा सकता है। समर्थकों और भाजपा की जीत सिंधिया के फैसले और भाजपा की सत्ता को सही साबित करेगी।
वीडी शर्मा
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए चुनाव बड़ा मौका है, जिसमें वे संगठन प्रबंधन की क्षमता साबित कर सकते हैं। वीडी संगठन के प्रबंधन पर ही फोकस कर रहे हैं। भाजपा ज्यादा से ज्यादा सीटें लाती है, तो शर्मा के कद बढ़ेगा। बेहद कम सीटें आने या चुनाव हारने पर शर्मा के नेतृत्व पर सवालिया निशान लगेंगे। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद यह शर्मा का पहला बड़ा चुनावी रण है।
दिग्विजय सिंह
पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के लिए यह चुनाव निजी तौर पर कुछ खोने और पाने से ज्यादा सिंधिया के राजनितिक कॅरियर को खत्म करने का बड़ा मौका है। भाजपा और सिंधिया समर्थक चुनाव हारते हैं, तो देश-प्रदेश और गुना की सियासी प्रतिद्वंद्विता में दिग्विजय, सिंधिया से काफी आगे निकल जाएंगे। कांग्रेस की सरकार बनने का रास्ता यदि खुलता है तो भी दिग्विजय के लिए इस बार ज्यादा मुफीद हालात होंगे। उनके बेटे जयवर्धन को वापस मंत्री पद मिलेगा। यदि कांग्रेस चुनाव हारती है, तो दिग्विजय के पास होने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है।
ये संकट में
कांग्रेस सरकार गिराकर भाजपा में आए 22 विधायकों में से कुछ हार जाते हैं, तो उनका राजनीतिक कैरियर हाशिए पर चला जाएगा। फिलहाल वे सत्ता से बाहर हो जाएंगे। भाजपा छोड़ कांग्रेस में पहुंचे प्रत्याशी भी चुनाव हारते हैं, तो उनके लिए भी राजनीतिक कैरियर संभालना मुश्किल होगा। दलबदलू नेता उपचुनाव हारते हैं तो ना इधर के रहे पाएंगे और ना उधर के।

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