बीजेपी का भरोसा जीता
दरअसल, गृह मंत्री अमित शाह की नजदीकी के चलते कम समय में ही सिंधिया भाजपा के मिस्टर मैनेजर बन गए हैं। यह पहला मौका है जब भाजपा ने कांग्रेस से आए किसी नेता पर इतना भरोसा जताया है। सिंधिया ने भाजपा में शर्तों के साथ एंट्री की। उन्होंने मिनी मंत्रिमंडल में पांच में से दो मंत्री बनवाकर जता दिया कि अब प्रदेश में सत्ता 60/40 के मुताबिक चलेगी। वहीं, अब अपने गुट के मंत्रियों को विभाग भी पसंद के दिलवाए हैं। मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार से लेकर विभागों के बंटवारे तक जो मशक्कत चलती रही उसमें भी सिंधिया की भूमिका अहम मानी जा रही है। दरअसल, दोनों मामलों में सिंधिया की पसंद को महत्त्व दिए जाने को लेकर मंथन होता रहा था। उनकी सहमति के बाद विभागों का बंटवारा हुआ माना जा रहा है।
सिंधिया का बढ़ता गया कद
ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा से राज्यसभा सदस्य बन गए। छह माह पहले जब वे कांग्रेस में थे तो लग रहा था कि शायद वे राज्यसभा में नहीं जा पाएंगे। अब तो यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि वे अगले मंत्रिमंडल विस्तार में केंद्रीय मंत्री बन सकते हैं। प्रदेश के शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में पूरी तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया के मन की चली। पहले संभावना थी कि सिंधिया खेमे से 12 मंत्री बनेंगे, लेकिन आखिरी वक्त पर उन्होंने ताकत दिखाई और अब शिवराज सरकार में उनके 14 मंत्री हैं।
सभी धड़ों को साध रहे हैं सिंधिया
मध्य प्रदेश बीजेपी में सिंधिया सभी धड़ो को साध रहे हैं मंगलवार को उपचुनाव प्रचार के लिये जाने से पहले उमा भारती के बंगले पहुंच गये। उमा भारती का सिंधिया परिवार से गहरा नाता है उमा भारती राजनीति में राजमाता विजयाराजे सिंधिया के कहने पर आईं थी। उमा भारती विजयाराजे को अपनी मां मानती हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया जब भाजपा में शामिल हुए तब उमा भारती ने कहा था कि- ज्योतिरादित्य जी के भारतीय जनता पार्टी में आ गए हैं, एक तरह से राजमाता की इच्छा पूरी हो गई है
सचिन के लिए राह नहीं आसान
सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर देश की राजनीति में नए साम्य की शुरुआत की थी। वे राहुल गांधी के सबसे करीबी नेताओं में से एक होने के साथ कांग्रेस में टॉप-10 में गिने जाते थे। उपेक्षा की अति ने सिंधिया को वो रास्ता अपनाने पर मजबूर किया, जिसकी कल्पना कोई नहीं कर रहा था। सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस के भीतर की खदबदाहट बाहर आने लगी है। खासकर युवा चेहरों में। राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलेट इसका एक उदाहरण हैं। इन सबके बीच सचिन के लिए सिंधिया बनना आसान नहीं होगा। सिंधिया के कांग्रेस छोडऩे और भाजपा में जाने के पीछे के कई आधार हैं, जो शायद सचिन को नहीं मिल पाएं।