उनके पति उस समय साइकिल पर दूध बांटने का काम करते थे। वे रोजाना मिसरोद से दूध लाकर गुलमोहर व अरेरा कॉलोनी में साइकिल से ही घर-घर सप्लाई करते। शहर में किराए पर रहते तो घर के अन्य खर्चे नहीं चलते। इसलिए चूनाभट्टी तिराहे के पास बुद्ध विहार पहाड़ी पर घने जंगल के किनारे झोपड़ी बनाई। बच्चों की परिवरिश व पढ़ाई के खर्च को चलाने के लिए घर पर ही परचूनी की एक छोटी सी दुकान शुरू की। वर्ष 2005 में मेरे पति के सीधे पैर में चर्म रोग हुआ।
जब पैर ठीक नहीं हुआ तो डॉक्टर ने खाल छील दी। इसके बाद स्थिति और ज्यादा बिगड़ गई। बाद में डॉक्टरों ने बताया कि कैंसर बन चुका है और पैर काटने के सिवा कोई चारा नहीं। इसके बाद उनका पैर काट दिया गया। पत्नी मेरे साथ दिल्ली हॉस्पिटल में थी। मेरे बड़े बेटे विनय ने घर के काम के साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। मैंने घर की परिस्थितियों को संभालते हुए बच्चों को गलत सोहबत से बचाने में पूरी दम लगा दी।
जिस माहौल में अधिकतर बच्चे नशेड़ी, गांजा पीने और चोरियों जैसे अपराधों में लिप्त रहते हैं, उसी माहौल से मैंने अपने बेटों को कंचन बनाकर निकाला। पति का इलाज, बच्चों की परवरिश और पढ़ाई बहुत मुश्किल हो रही थी। मेरे पिता ने बच्चों को पढ़ाई के लिए बहुत प्रेरित किया। मदर टेरेसा से स्कूलिंग और जेएनसीटी से इंजीनियरिंग करने के बाद बेटे विनय का कैम्पस प्लेसमेंट के जरिए टीसीएस के लिए चयन किया गया। विनय जर्मनी होकर आया है।
छोटे बेटे सौरभ ने इस वर्ष 12वीं की परीक्षा दी है और अब वह होटल मैनेजमेंट की तैयारी कर रहा है। विनय की शादी एक होनहार लड़की से तय हुई है, जो स्वयं भी इंजीनियर है। कल्पना शुरू से ही व्यवहारकुशल और परोपकारी रही हैं। उन्होंने कई जरूरतमंद महिलाओं की विभिन्न स्तरों पर मदद की है। वे बस्तियों की गरीब महिलाओं को बच्चों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करती हैं।