क्या किसी चीज में आपका भी मन नहीं लगता, धैर्य दे रहा जवाब…
राजधानी के सैकड़ों लोग हर पल बदलते ख्यालों से परेशान हैं। किसी एक निर्णय पर टिक न पाने की वजह से जीवन तनाव में है। सामाजिक,आर्थिक और पारिवारिक रिश्ते खराब हो रहे हैं। मानसिक चिकित्सकों के पास पहुंचने वाले लोगों में 30 फीसद इस तरह समस्याओं से परेशान हैं। डॉक्टर इसे पॉकक्रान ब्रेन सिड्रोम बता रहे हैं।
![](data:image/svg+xml,%3csvg%20xmlns=%27http://www.w3.org/2000/svg%27%20version=%271.1%27%20width=%27400%27%20height=%27266%27/%3e)
![popcorn_syndrom_cartoon.jpg](/_next/image?url=https%3A%2F%2Fcms.patrika.com%2Fwp-content%2Fuploads%2F2024%2F02%2F21%2Fpopcorn_syndrom_cartoon.jpg%3Ffit%3Dcover%2Cgravity%3Dauto%2Cquality%3D75&w=828&q=75)
भोपाल. सुष्मित बीटेक कर चुके हैं। एक साल में तीन नौकरियां बदल चुके हैं। उनका किसी चीज में मन नहीं लगता। धैर्य जल्दी जवाब दे जाता है। किसी निर्णय पर देर तक टिक नहीं पाते। कमोबेश, यही हाल बबीता का है। वे पहले आफिस से आने के बाद कई विकल्प थे। लॉन में घूमती थीं। बाजार जाती थीं। पड़ोसियों से बातचीत करती थीं। लेकिन अब वह फ्रेश होते ही फोन लेकर बैठ जाती है। कभी मेल, कभी फेसबुक,कभी एक्स तो कभी रील देखती हैं। एकाग्रता फिर भी नहीं। यह एक उदाहरण है। राजधानी के सैकड़ों लोग हर पल बदलते ख्यालों से परेशान हैं। किसी एक निर्णय पर टिक न पाने की वजह से जीवन तनाव में है। सामाजिक,आर्थिक और पारिवारिक रिश्ते खराब हो रहे हैं। मानसिक चिकित्सकों के पास पहुंचने वाले लोगों में ३० फीसद इस तरह समस्याओं से परेशान हैं। डॉक्टर इसे पॉकक्रान ब्रेन सिड्रोम बता रहे हैं। इसकी वजह सोशल मीडिया और बढ़ता डिजिटाइलेशन है।
सोशल ट्रेंड में
चिकित्सकों के अनुसार 2011 में वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के रिसर्चर डेविड लेवी ने इस समस्या को पॉपकॉर्न ब्रेन नाम दिया था। 19 फरवरी पॉपकॉर्न ब्रेन शब्द सोशल मीडिया पर ट्रेंड्स करता रहा।
बच्चों के लिए ज्यादा घातक
जीवन में धैर्य और किसी एक मुद्दे या निर्णय पर ठहराव प्रमुख कुशलता है। लेकिन डिजिटलाइजेशन यह काबलियत तेजी से छीन रहा है। बच्चों के लिए यह स्थिति ज्यादा घातक है क्योंकि वे पढ़ाई, खेलकूद या किसी एक सब्जेट पर ज्यादा देर टिक नहीं पा रहे।
खतरनाक होती स्थिति
2004 में व्यक्ति ढाई मिनट तक एक चीज पर स्थिर रहता था। अब 30 से 40 सेकेंड पर आ गया है।
न्यूज पेपर पढऩे की आदत से आएगा सुधार
पॉपकॉर्न ब्रेन का बड़ा दुष्प्रभाव बेचैनी की समस्या है। लंबे समय तक ध्यान एकाग्र कर लोग किताबें व न्यूजपेपर नहीं पढ़ पा रहे। लेकिन इस सिंड्रोम से बचने का बेहतर उपाय पढ़ाई ही है। इसका सबसे बेहतर और सस्ता उपाय न्यूजपेपर रीडिंग है।
क्या हो रहा नुकसान
– अच्छे आइडियाज को अगला ख्याल दबा देता है
– दिमाग की कार्यशक्ति तेजी से कम हो रही
– किसी भी टॉपिक पर डीप जानकारी से बच रहे
– स्ट्रेस लेवल बढ़ रहा है
कैसे बचें इस सिड्रोम से
-ऑनलाइन जीवन का रिकॉर्ड रखें
-मोबाइल,इंटरनेट उपयोग की समय सीमा तय करें
-खिड़की से बाहर देखें,खाली समय का उपयोग करें
-मस्तिष्क को आराम और रिचार्ज करने के लिए डिजिटल डिटॉक्स से गुजरें।
-ध्यान करें, प्रकृति का आनंद लें, व्यायाम करें, न्यूज पेपर पढ़े।
एक्सपर्ट व्यू
ओपीडी में एक माह में कम से कम एक हजार लोग फोन एडिक्ट के कारण मानसिक रूप से बीमार होकर आ रहे हैं। इनमें 30 फीसदी का ब्रेन बहुत तेजी के साथ एक चीज से दूसरी चीज पर चला जाता है। यह स्थिति पॉपकॉर्न ब्रेन सिड्रोम कहलाती है। इसकी बड़ी वजह डिजिटलाइजेशन और सोशल मीडिया है। दरअसल, मानव मस्तिष्क तत्काल संतुष्टि, तेज गति और प्रौद्योगिकी की अप्रत्याशितता की लालसा रखता है। आज किसी को नहीं पता कि अगला ट्वीट क्या होने वाला है। कौन से ई-मेल आने वाला है। या माउस के अगले क्लिक पर क्या मिलेगा? लेकिन इंसान को पता है कि बगीचे में क्या इंतजार कर रहा है। इसलिए बाहर की दुनिया में निकलना जरूरी है। ऑनलाइन जीवन के दौरान लोग अक्सर बहुत सारी जानकारी, विचार और विज्ञान के बिना जानकारी के साथ बहुत अधिक समय बिता सकते हैं, जिससे उनकी सोचने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। बचने का तरीका यही है डिजिटल दुनिया से कामभर की ही नजदीकी रखें।
डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी सीनियर मनोचिकित्सक
Hindi News/ Bhopal / क्या किसी चीज में आपका भी मन नहीं लगता, धैर्य दे रहा जवाब…