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भोपाल

राजीव की आवाज में जो एरोगेंसी और स्ट्रेंथ है वो मुझसे नहीं है

8 बार पति का किद- 15 साल पहले पहला शो, 8 साल बाद नाटक रिवाइव किया, अब तक 13 शो- भारत भवन में नाटक ‘जंगल में खुलने वाली खिड़की’ का मंचनरार निभा चुके डायरेक्टर बोले, मैंने इसलिए छोड़ा किरदार क्योंकि
 

भोपालSep 04, 2018 / 03:22 pm

hitesh sharma

rajiv

राजीव की आवाज में जो एरोगेंसी और स्ट्रेंथ है वो मुझसे नहीं है

भोपाल। प्रख्यात रंगकर्मी ब.व. कारंत की स्मृति में आयोजित ‘आदरांजलि’ के तहत सोमवार को नाटक ‘जंगल में खुलने वाली खिड़की’ का मंचन हुआ। जितेन्द्र भाटिया द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशन प्रशांत खिरवड़कर ने किया। नाटक में अमीर और घमंडी पति का रोल राजीव वर्मा ने बखूबी निभाया।

खिरवड़कर ने बताया कि यह रोल पहले मैं खुद निभाया करता था। 15 साल पहले भोपाल में ही इसका पहला शो किया था, इसके बाद करीब 5 शो और किए। वर्ष 2011 में इस नाटक को रिवाइव किया और तीन शो किए। खिरवड़कर बताते हैं कि बिजनेसमैन पति का कैरेक्टर डॉमिनेटिंग है, जो पत्नी पर पूरी तरह से हावी रहता है। उसमें ईगो और एरोगेंसी है।

मुझे राजीव की आवाज में एरोगेंसी और स्ट्रेंथ दिखती है, इसलिए मैंने उन्हें इस रोल के लिए चुना, राजीव 2015 से यह किरदार निभा रहे हैं यह उनका पांचवा शो है। खास बात यह है कि इसी साल मार्च महीने में आयोजित थिएटर ओलंपिक्स के तहत जम्मू में भी यह नाटक किया जा चुका है। करीब डेढ़ घंटे की अवधि वाले इस नाटक में राजीव वर्मा के अलावा प्रवीण महुवाले और महुआ चटर्जी मुख्य किरदार में हैं। इससे पहले 28 जून को भी रवीन्द्र भवन में यह नाटक मंचित हो चुका है।

 

जंगल में खुलती है मन की खिड़की
यह पति-पत्नी की कहानी है। दोनों बड़े बिजनेसमैन हैं। होली से बचने के लिए दोनों खंडाला में वीकेंड कॉटेज में जाते हैं। रात में बारिश से बचने के लिए एक लड़का वहां रुकता है। रात में जब पत्नी उससे बात करती है तो उसे महसूस होता है कि उन दोनों में समानता है। वो उसके पति जैसा नहीं है। अचानक बत्ती गुल हो जाती है और लड़का उसे सुधारने के चक्कर में घाटी में गिर जाता है।

काफी तलाश करने बाद भी जब लड़का नहीं मिलता और पत्नी अपने पति से कहती है कि पुलिस में रिपोर्ट कर दो, लेकिन पति रिपोर्ट नहीं करता। अंत में पता चलता है वह लड़का जिंदा होता है। इस पर पत्नी लड़के से कहती हैं कि तुम मुझे पागल बना रहे थे। तुम और मेरे पति एक जैसे हो। फिर घर वापसी करते समय पत्नी अपने पति से कहती है, तुम घर चलो मैं जंगल के रास्ते महुए के फूल देखते हुए घर लौट आऊंगी। इस तरह उसके मन की खिड़की जंगल में खुलती है।

 

मेरी उपभोक्तावाद सीरीज पर बेस्ड है नाटक

खिरवड़कर बताते हैं कि मैं बहुत सालों से ह्यूमन ट्रेंडेंसी और सोशल आस्पेक्ट पर बेस्ड नाटक कर रहा था, उपभोक्तावाद एक ऐसी चीज थी जो मुझे मेरे पिताजी के समय से अट्रैक्ट करता था। उन्होंने ‘व्यक्तिगत’ नाम का एक नाटक किया था। वहां से उपभोक्तावाद का सिलसिला शुरू हुआ और जब मैंने यह नाटक पढ़ा तो लगा कि इसमें उपभोक्तावाद को दर्शाने के लिए काफी कुछ है। यह नाटक मेरी सीरीज उपभोक्तावाद का ही हिस्सा है।

 

जंगल में दिखा एक रियलिस्टिक कमरा
नाटक में मंच सज्जा आकर्षण का केन्द्र रहा। स्टेज पर एक कमरे को रियलिस्टिक अंदाज में दिखाया। नाटक में विशेष प्रकार की लाइट का भी यूज किया गया है। नाटक का सेट हवेली की तरह बनाया गया। यह प्रस्तुति रंगायान भोपाल के कलाकारों ने दी, म्यूजिक डॉ. भानुदास देशमानकर, मॉरिस लैजरस और अनुज खिरवड़कर ने दिया। लाइट डिजायन अनूप जोशी ‘बंटी’, सेट डिजायन राहुल रस्तोगी और कॉस्ट्यूम डिजायन ज्योति रस्तोगी ने किया।

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