इसमें सरकार अभी पदोन्नति दे देगी और बाद में कोर्ट का जो फैसला आएगा, उसका पालन किया जाएगा। इसके लिए याचिका दायर करने की तैयारी की जा रही है। दरअसल, हाईकोर्ट ने राज्य के वर्ष 2002 के पदोन्नति में आरक्षण के नियमों को 2016 में रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि पदोन्नति में आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही बताते हुए मामले में यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए थे। तभी से यह मामला कोर्ट में लंबित है।
शिवराज ने उम्र बढ़ाकर डाला था मामला
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कर्मचारियों के आक्रोश को कम करने के लिए उनकी सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 कर मामले को टाल दिया था।
हर साल सेवानिवृत्त हो रहे 10 हजार लोग
सामान्य प्रशासन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन लगाकर यथास्थिति को स्थगन में बदलने और सशर्त पदोन्नति देने की अनुमति मांगने का प्रस्ताव तैयार कर लिया था। इसे मुख्यमंत्री सचिवालय भेजा गया लेकिन पूर्ववर्ती शिवराज सरकार में मंथन का दौर ही चलता रहा। इसके बाद विधानसभा और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई। बताया जाता है कि हर साल 10 से अधिक अधिकारी-कर्मचारी बगैर पदोन्नति पाए ही रिटायर हो रहे हैं।
याचिका दाखिल की जा रही है
जीएडी मंत्री डा. गोविंद सिंह कहते हैं कि सरकार की मंशा है कि प्रदेश के अधिकारी-कर्मचारियों को सशर्त पदोन्नति की अनुमति मिल जाए। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जा रही है।