script16 मापदंडों पर पिछड़ी मध्यप्रदेश की स्कूली शिक्षा | School education of Madhya Pradesh backward on 16 parameters | Patrika News
भोपाल

16 मापदंडों पर पिछड़ी मध्यप्रदेश की स्कूली शिक्षा

तीन सालों में एक पायदान भी नहीं चढ़ पाए हम
पीजीआई में थर्ड ग्रेड पर खड़ा प्रदेश

भोपालJun 12, 2021 / 03:08 pm

Arun Tiwari

conduct door-to-door surveys by June 30 to identify school dropouts

conduct door-to-door surveys by June 30 to identify school dropouts

भोपाल : केंद्र सरकार ने स्कूलों की पीजीआई यानी परफार्मेंस ग्रेड इंडेक्स में राज्यों की स्थिति की रिपोर्ट जारी की। देश के बीस राज्यों ने बड़ी छलांग लगाई और पहले से बेहतर स्थिति पर पहुंचे लेकिन मध्यप्रदेश के हालात स्कूली शिक्षा के मामले में बहुत दयनीय नजर आते हैं। प्रदेश पिछले तीन सालों से अंगद के पांव की तरह एक ही स्थान पर जमा हुआ है। प्रदेश की स्थिति छटवें स्तर और तीसरी ग्रेड के राज्यों में आती है। जिसमें उसके साथ बिहार,मिजोरम और मेघालय हैं। हैरानी बात ये भी है कि उत्तरप्रदेश, झारखंड, आंध्रप्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य मध्यप्रदेश से आगे निकल गए। पिछड़ा और बीमारु राज्य कहा जाने वाला बिहार मध्यप्रदेश से पीछे था लेकिन वो भी प्रदेश के बराबर आकर खड़ा हो गया। मध्यप्रदेश मुख्यत: 16 मापदंडों पर पिछड़ रहा है जिसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर, ड्रॉपआउट, छात्र-शिक्षक अनुपात, स्कूलों में पहुंच,समानता और सरकारी सिस्टम शामिल है। सरकार मानती है स्कूली शिक्षा में प्रदेश की यह स्थिति चिंताजनक है।

पहली से बारहवीं तक 82 फीसदी छात्र छोड़ देते हैं स्कूल :
मध्यप्रदेश में बच्चों का ड्रॉपआउट रेट बहुत ज्यादा है। सरकार नामांकन बढ़ाने के लिए बच्चों का पहली में एडमिशन तो कर लेती है लेकिन इनकी संख्या साल दर साल कम होती जाती है। बारहवीं में महज 18 फीसदी लड़कियां और 19 फीसदी लडक़े रह जाते हैं। प्राथमिक शिक्षा में स्कूलों में लडक़ों का नामांकन 3942871 और लड़कियों का नामांकन 3621229 था। जो हायर सेकंडरी तक जाते-जाते 82 फीसदी कम हो गया। हायर सेकंडरी में लडक़ों की संख्या 760517 रह गई और लड़कियों की संख्या 666399 ही बची।

आधे स्कूलों में नहीं बिजली :
21वीं सदी में चल रहे देश में बिजली बहुत जरुरी है। लेकिन प्रदेश इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी अभी बहुत पीछे है। प्रदेश के आधे स्कूलों में तो बिजली का तार ही नहीं पहुंचा है। इंटरनेट से पढ़ाई तो बहुत दूर की बात है। प्रदेश के सवा लाख सरकारी स्कूलों में से सिर्फ 58831 स्कूलों में ही बिजली पहुंच पाई है। प्रदेश के छह हजार स्कूलों में गल्र्स टॉयलेट तो सात हजार स्कूलों में बॉयज टॉयलेट नहीं है।

छात्र-शिक्षक अनुपात में पिछड़ा प्रदेश :
प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की हालत बहुत खराब है। स्कूल के मापदंड कहते हैं कि प्राथमिक स्तर पर तीस बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए लेकिन प्रदेश में 48 छात्रों पर एक शिक्षक है। और माध्यमिक स्तर पर 37 छात्रों पर एक शिक्षक है जो कि बिहार के बराबर है। सरकार 30 हजार शिक्षकों की भर्ती कर रही है लेकिन इससे दोगुने शिक्षकों की आवश्यकता है। पांच हजार से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जहां पर एक भी शिक्षक नहीं है या फिर एक शिक्षक के सहारे पढ़ाई चल रही है। प्रदेश में सात हजार स्कूल ऐसे हैं जहां पर या तो छात्र नहीं हैं या फिर बीस से कम छात्र हैं।

पीजीआई में ये रहा प्रदेश का स्कोर :
– सीखने के परिणाम और गुणवत्ता – 180 अंकों में से प्रदेश को 140 अंक
– स्कूलों में पहुंच – 80 अंकों में प्रदेश को 68 अंक
– स्कूलों में सुविधाएं – 150 में से प्रदेश को 109 अंक
– छात्रों में समानता – 230 में से प्रदेश को 217 अंक
– सरकारी तंत्र – 360 में से प्रदेश को 214 अंक

प्रदेश की फैक्ट फाइल :
– सरकारी स्कूल – 122056
– प्रायवेट स्कूल – 29182
– सरकारी स्कूलों में शिक्षक – 323475
– प्रायवेट स्कूलों में शिक्षक – 244504
– सरकारी स्कूलों में छात्र – 9278857
– प्रायवेट स्कूलों में छात्र – 6140328

क्या कहती है सरकार :
स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार कहते हैं कि हमारे यहां स्कूल शिक्षा की बहुत खराब स्थिति है यह हम स्वीकार करते हैं। हम इसी स्थिति को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं। हमारे यहां ड्रॉपआउट बहुत ज्यादा है इनको रोकना है। शिक्षकों की भर्ती कर छात्र-शिक्षक अनुपात सुधारेंगे। इन्फ्रास्ट्राक्चर बेहतर करने की भी तैयारी कर रहे हैं। हर स्कूल में बिजली और इंटरनेट हो इसका प्रयास भी किया जा रहा है। पीजीआई में प्रदेश की स्थिति बहुत कमजोर है और इसे बेहतर करने की जरुरत है।
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