हालात यह हो गए कि एक किलोमीटर की दूरी पूरी करने में10-10 मिनट का वक्त लग रहा है। सिंक्रोनाइज्ड नहीं होने के पीछे की बड़ी वजह सिग्नल मेंटेनेंस के लिए काम कर रही तीन एजेंसियां हैं। जिन्हें नगर निगम ने अलग-अलग चौराहे के सिग्नल के मेंटेनेंस का काम सौंप रखा है। अलग-अलग एजेंसियां होने की वजह से इनमें आपसी खींचतान चल रही है। वे सिंक्रोनाइज्ड सिस्टम चलाने अलग-अलग दलील देते हैं। ऐसे में पिछले छह माह से मामला अधर में अटका हुआ है।जाएगी।
व्यापमं से ज्योति तक जाने में लग रहे 5 मिनट
मान लीजिए व्यापमं चौराहा से किसी वाहन चालक को बोर्ड ऑफिस होते हुए भेल जाना है, तो सिग्नल सिंक्रोनाइज होने पर यदि उसे व्यापमं चौराहे का सिग्नल ग्रीन मिला तो बोर्ड ऑफिस, ज्योति टॉकीज चौराहा का सिग्नल भी ग्रीन ही मिलेगा। मैन्युअल सर्वे में करीब दो मिनट में वाहन चालक व्यापमं चौराहे से ज्योति टॉकीज चौराहा क्रास कर गया। जबकि अभी यह दूरी पार करने में 5 से 7 मिनट लग रहे हैं।
बोर्ड ऑफिस चौराहे के आस-पास के सिग्नलों से हर रोज करीब एक लाख वाहन गुजरते हैं। सिग्नल सिंक्रोनाइज नहीं होने से चालकों को रेड लाइट में डेढ़-डेढ़ मिनट इंतजार करना पड़ता है। तब कहीं जाकर वह एक सिग्नल को पार कर पाते हैं। वाहनों की लंबी कतार होने पर कई चालकों के लिए यह वक्त दोगूना हो जाता है। वजह यह कि ग्रीन सिग्नल की टाइमिंग के बीच वह निकल ही नहीं पाता।
अगस्त में तीन दिन तक हुआ था मैनुअल सर्वे
तत्कालीन ट्रैफिक एएसपी महेन्द्र जैन ने अगस्त 2018 में तीन दिन तक बोर्ड आफिस चौराहे समेत आसपास के इंजीनियर्स के साथ मैन्युअल सर्वे कराया था। उन्होंने पिन-पाइंट टाइम, वाहनों की संख्या, वाहनों की गति, अलग-अलग दिन, सिग्नल के बीच की दूरी, अलग-अलग दिन में समय पर वाहनों की संख्या का सर्वे किया था। दावा किया गया कि जल्द ही यह सुविधा शुरू हो