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आजादी तो पाई पर विभाजन का दर्द भी पाया। हमें सिंध प्रांत से यहां आना पड़ा। सन 1949 में मैं भोपाल पहुंचा। तब यहां भोपाल की आजादी के लिए विलीनीकरण आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन में भी मैं शामिल हुआ और 8 दिन जेल में बंद रहा। यह कहना है 97 वर्षीय वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इतवारा निवासी लक्ष्मणदास केसवानी का। देश की आजादी के लिए हुए संघर्ष के दौरान वे दो बार जेल में रह चुके हैं।
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पहली बार वे 19 महीने 4 दिन तक कराची जेल में थे, इस बीच उन्हें सात माह के लिए अंडमान निकोबार जेल में भी भेजा था, इसके अलावा वे तीन माह तक सिंध प्रांत के फख्खड़ जेल में भी रहे। उन्होंने बताया कि बड़े संघर्ष और वीरों की कुर्बानियों के बाद हमें आजादी मिली है, यह हमारी अमूल्य धरोहर है।
हमें इसकी रक्षा करनी चाहिए। आज के दौर में देशभक्ति जैसी भावना कम होती जा रही है। आजादी के लिए जैसे पूरे देश ने एकजुट होकर संघर्ष किया था, उस तरह की एकता और जज्बा अब लोगों में नहीं दिखाई देता है।
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रात 12 बजे मनाया था जश्न
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रेमनारायण मालवीय का कहना है कि उस समय आजादी को लेकर लोगों में खासा उत्साह था। तब मेरी उम्र 17 साल की रही होगी। 14 अगस्त की शाम से ही सब लोग उत्साहित थे। तब हमारा प्रजामंडल का कार्यालय चौक में हुआ करता था। हम लोग वहीं पर एकत्रित थे और रेडियो पर सुन रहे थे।
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रात 12 बजे ऑल इंडिया रेडियो पर ऐलान हुआ कि अब हिन्दुस्तान आजाद हो गया है। इसके बाद हम सब खुशी से झूम उठे। उत्साह से नाचने गाने लगे। फिर रात के 12 बजे हमने कार्यालय के छत पर जाकर हमारे पास जो तिरंगा था, उसे पूरे सम्मान के साथ फहराया और रोशनी के लिए एक 200 वॉट का बल्ब लगाया। आजादी के तराने गाए। इसके बाद अगले दिन सुबह जुमेराती में झंडावंदन का कार्यक्रम हुआ था।