मध्यप्रदेश में पांच वर्षों से पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव अटके हुए थे। कोर्ट ने मंगलवार को राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव कराने को कहा है। कोर्ट ने कहा है कि 5 साल में चुनाव करवाना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। 2 सप्ताह में अधिसूचना जारी करें। ओबीसी आरक्षण के लिए तय शर्तों को पूरा किए बिना आरक्षण नहीं मिल सकता, अभी सिर्फ एससी/एसटी आरक्षण के साथ ही चुनाव कराने होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला जया ठाकुर और सैयद जाफर की याचिका पर सुनाया। जाफर ने बताया कि कोर्ट ने आदेश दिया है। कि राज्य निर्वाचन आयोग 15 दिन के अंदर पंचायत और नगर पालिका के चुनाव की अधिसूचना जारी करें।
राज्य सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की थी। इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था और मंगलवार को अपना फैसला सुनाया।
ओबीसी आरक्षण के मामले में प्रदेश की भाजपा सरकार की रिपोर्ट को कोर्ट ने अधूरा माना है। अधूरी रिपोर्ट होने के कारण मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को चुनाव में आरक्षण नहीं मिलेगा। इसलिए अब स्थानीय चुनाव 36% आरक्षण के साथ ही होंगे। इसमें 20% STऔर 16% SC का आरक्षण रहेगा। जबकि, शिवराज सरकार ने पंचायत चुनाव 27% OBC आरक्षण के साथ कराने की बात कही थी। इसीलिए यह चुनाव अटके हुए थे। वहीं ताजा घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कोर्ट के फैसले का अध्ययन करेंगे। सरकार रिव्यू पिटीशन दायर करेगी।
ओबीसी आरक्षण के साथ हों चुनाव
इधर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को मीडिया को अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अभी अध्ययन हमने अभी नहीं किया है। लेकिन, ओबीसी आरक्षण के साथ ही पंचायत के चुनाव हो, इसके लिए रिव्यू पिटीशन हम दायर करेंगे। और पुनः आग्रह करेंगे कि स्थानीय चुनाव, स्थानीय निकायों के चुनाव ओबीसी के आरक्षण के साथ हों।
भाजपा को भुगतना होगा खामियाजा
कांग्रेस नेता जेपी धनोपिया ने कहा कि भाजपा ओबीसी वर्ग के साथ धोखा करने का षड्यंत्र करने का प्रयास कर रही थी। वो अपने षड्यंत्र में सफल भी हो गई। उसकी ओर से जो कोर्ट में गलत जानकारी दी गई थी, उस पर फैसला आ गया है। गलत आबादी, ज्यादा आरक्षण की मांग को लेकर भी गलत जानकारी दी गई है। इन बातों से लग रहा था कि यह लोग कहीं न कहीं एक बार फिर पिछड़े वर्ग के साथ छलावा करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब भाजपा को आने वाले वक्त में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
सरकार को उठाना चाहिए था कदम
राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला पंचायती, नगरीय निकायों के संबंध में आ गया। यह निर्णय पूर्व निर्धारित सुप्रीम कोर्ट के नजीर आर ट्रिपल टेस्ट के मापदंड के अनुरूप है। समय रहते यदि मध्यप्रदेश सरकार निर्धारित कदम ले लेती तो ये स्थिति ओबीसी आरक्षण को लेकर नहीं होती।
कांग्रेस के कारण बनी यह स्थिति
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि यह कांग्रेस के द्वारा किया गया है, जिसका परिणाम है। हम याचिका का अध्ययन कर रहे हैं और उसके आधार पर पुनर्विचार याचिका लगाने पर विचार कर रहे हैं। जहां तक कांग्रेस के सवाल उठाने का है, तो कांग्रेस विधानसभा में कुछ कहती है और फिर उसी पर कोर्ट चली जाती है। अगर उन्होंने सही प्रक्रिया से किया होता तो आज यह फैसला अटका नहीं होता।