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बरेदी नृत्य से किया श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन

गमक शृंखला में स्वराज गायन और बुंदेली लोकनृत्य की प्रस्तुति

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भोपाल। संस्कृति विभाग की एकाग्र शृंखला गमक में जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी की ओर से रीवा के संतोष तिवारी और साथियों का बघेली स्वराज गायन पेश किया गया। वहीं, सागर के रितेश चौरसिया और साथियों का बुंदेली नृत्य की प्रस्तुति हुई। प्रस्तुति की शुरुआत बघेली स्वराज गायन से हुई। जिसमें एजी गांधी चले हैं गैल गांव..., अरे होई गा सर-सर अत्याचार..., देसुआ मां अर्जी आजादी हो..., चरखा के टूटे न तार..., अंग्रेजों के राज मां..., भारत की धरती मैया रे सोने की चिरैया..., सउहैं विपदा परी हबे गुलामी... और भरात की अजब बहार... आदि स्वराज गीतों का गायन किया।
दूसरी प्रस्तुति बुंदेली लोकनृत्य बरेदी और जवारा की हुई। बरेदी नृत्य बुंदेलखण्ड अंचल का एक प्रचलित नृत्य है, यह नृत्य अहीर समुदाय के लोगों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। बरेदी नृत्य में नर्तक भगवान श्रीकृष्ण की बाल्य अवस्था से लेकर युवा अवस्था तक की लीलाओं को प्रस्तुत करते हैं, यह नृत्य दीपावली के दूसरे दिन से आरम्भ कर पूर्णिमा तक किया जाता है। जवारा लोकनृत्य एक अनुष्ठानिक लोकनृत्य है जो की नवरात्री की नवमीं के दिन जवारे विसर्जन के समय किया जाता है। इस नृत्य में महिला और पुरुष दोनों की ही भागीदारी रहती है। महिलाएं सर पर जवारे के पत्र को रखकर नृत्य करती हैं।

साहित्य अकादमी ने पाण्डुलिपि अनुदान किए घोषित

भोपाल। साहित्य अकादमीने वर्ष-2018 तथा 2019 के लिए प्रदेश के लेखक की प्रथम कृति के प्रकाशनार्थ श्रेष्ठ पाण्डुलिपियों की घोषणा कर दी है। प्रति पाण्डुलिपि २० हजार रुपए की सहायता अनुदान प्रतिवर्ष कुल 40 पाण्डुलिपियों को दी जाएगी। दो वर्षों की कुल 80 श्रेष्ठ पाण्डुलिपियों का चयन किया गया है। साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने बताया कि प्रदेश के लेखक की प्रथम कृति प्रकाशन योजना के अंतर्गत राजधानी से रूपाली सक्सेना, दिनेश गुप्ता 'मकरंदÓ, राजेन्द्र गुप्ता, अशोक चन्द्र दुबे 'अशोकÓ, इंजी. जलज गुप्ता, नीति श्रीवास्तव, अभिलाष ठाकुर, डॉ. यास्मिन खान, चित्रांश खरे, पंवार राजस्थानी, डॉ. साधना गंगराडे, पंकज पाठक, कुमार चंदन, नीता सक्सेना, राकेश शेवानी और विशाखा राजुरकर की पांडुलिपि प्रकाशन सहायता अनुदान के लिए स्वीकृत हुई हैं।