
असली पात्रों के जरिए बताया एचआईवी पीडि़त का दर्द
भोपाल भारत भवन में चल रहे ब.व. कारंत स्मृति समारोह 'आदरांजलि' का बुधवार को समापन हो गया। अंतिम दिन नाटक 'शिफा' का मंचन हुआ। शिफा एचआईवी संक्रमित उन लोगों की कहानी है जिनको समाज ने अलग कर रखा है। वह यह भूल गए हैं कि वो जिन्दा हैं।
इस नाटक को एनएसडी के फैकल्टी रहे त्रिपुरारी शर्मा ने लिखा है। इसकी कहानी 2009 में यूनिसेफ के एक प्रोग्राम में नाटक मंचन के लिए लिखी गई थी। इस नाटक के अब तक 22 शो हो चुके हैं। इसके लिए शर्मा ने एचवीआई पीडि़तों के बीच जाकर उनके दर्द को समझा और स्क्रिप्ट तैयार की थी। एक घंटे तीस मिनट के नाटक में ऑनस्टेज 13 कलाकारों ने अभिनय किया है। नाटक का डायरेक्शन टीकम जोशी ने किया है।
लेट्स सर्च फॉर पॉजिटिविटी
डा यरेक्टर का कहना है कि नाटक की थीम लेट्स सर्च पॉजिटिविटी फॉर पॉजिटिव पीपुल है। नाटक के तीन केंद्रीय पात्र है। एक किरदार का नाम संजीव है, जो इंजीनियर है। उसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण एचआईवी हो गया। वहीं, दूसरी किरदार छाया है, जिसे पति के कारण और तीसरी किरदार बरखा को अपने पेरेन्ट्स के कारण इसका शिकार होना पड़ा।
डायरेक्टर का कहना है कि नाटक की थीम लेट्स सर्च पॉजिटिविटी फॉर पॉजिटिव पीपुल है। नाटक के तीन केंद्रीय पात्र है। एक किरदार का नाम संजीव है, जो इंजीनियर है। उसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण एचआईवी हो गया। वहीं, दूसरी किरदार छाया है, जिसे पति के कारण और तीसरी किरदार बरखा को अपने पेरेन्ट्स के कारण इसका शिकार होना पड़ा। छाया को उसके घर में कैद कर दिया जाता है।
नाटक की कहानी इन तीनों के ही इर्द-गिर्द घुमती है। तीनों किरदार मिलते हैं फिर नाटक के अंदर नाटक शुरू होता है। संजीव एक ऐसा किरदार है। जो अपने जैसों की मदद करता है। वह छाया को भी कैद से आजाद कराता है। इधर, बरखा के पेरेन्ट्स की मौत के बाद उसे उसकी रूढ़ीवादी नानी पाल रही है। उसका एक प्रेमी भी है। तीनों ही पात्रों की कहानी असली है, बस नाम बदल दिए गए। नाटक में पर्दे के रूप में प्रोजेक्टर का यूज किया गया, जो उनके एहसासों को दर्शाने का प्रयास कर रहा था।
Published on:
06 Sept 2018 03:46 pm
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