कोरोना के कारण आर्थिक मोर्चे पर स्थिति बेहतर नहीं है। इस कारण बिजली सब्सिडी को लेकर परेशानी हो रही है। सरकार बिजली सब्सिडी घटाने का प्रयास भी कर रही है, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल पाया है। हालांकि इस पर मंत्रियों की समूह गठित कर दी गई है। जल्द ही इसकी रिपोर्ट सरकार के सामने रखी जाएगी। ऐसे में संभव है कि आगे चलकर इसमें कमी की जाए।
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मध्यप्रदेश के लिए बिजली सब्सिडी का गणित ज्यादा भारी है, क्योंकि सरकार करीब 21 हजार करोड़ की सब्सिडी दे रही है। इस सब्सिडी को कम करने के लिए बीते छह महीने से सरकार प्रयास कर रही है। इसके लिए मंत्रियों का समूह भी गठित किया गया है, लेकिन अभी रिपोर्ट नहीं आई है।
ऊर्जा मंत्रालय ने गाइडलाइन दी है कि राज्य की ओर से बिजली कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी त्वरित दी जाए। मासिक तौर पर भुगतान हो। मप्र चाहता है कि सालभर में कभी भी सब्सिडी देने की छूट मिले। साल के आखिर में केंद्र सब्सिडी की जवाबदेही तय हो। दिक्कत ये कि यदि सब्सिडी तुरंत दी जाएगी तो वह पैसा तुरंत चुकाना होगा। प्रदेश के पास अभी इतना पैसा नहीं है। सालभर के पीरियड में सरकार बजट एडजेस्टमेंट कर लेती है। मासिक या तिमाही भुगतान में यह नहीं हो सकेगा। केंद्र ने फिलहाल अधिकतम तीन माह की देरी को फौरी तौर पर मौखिक रूप से माना है।
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वही सब्सिडी का पूरा हिसाब और ऑडिट रिपोर्ट दी जाए। यह ऑडिट रिपोट्र्स भी भुगतान के बाद त्वरित दी जाए। यानी मासिक या तिमाही प्रक्रिया के तहत दी जाए। मध्यप्रदेश सब्सिडी राशि की तरह ही हिसाब व ऑडिट रिपोट्र्स भी सालाना देना चाहता है। वित्तीय सत्र के अंत में पूरी रिपोर्ट देने की बात कही गई है, लेकिन केंद्र ने इसे नहीं माना है। मध्यप्रदेश को हर महीने रिपोर्ट देने व ऑडिट में दिक्कत यह है कि इससे हर महीने की आर्थिक जवाबदेही तय हो जाएगी। बजट नहीं होने की स्थिति में प्रदेश डिफाल्टर ग्रेड में आ सकता है। सालाना देने पर वह ऑडिट एडजेस्टमेंट कर सकता है।