तोमर के सीट बदलने की चर्चा भी है। सुषमा स्वराज के चुनाव लडऩे से इनकार के बाद भाजपा की सबसे सुरक्षित भोपाल या फिर विदिशा से उन्हें उतारने पर पार्टी विचार कर रही है। तोमर 2009 में मुरैना फिर 2014 में ग्वालियर से जीते थे।
तोमर ने डबरा और भितरवार क्षेत्र को भरपूर पेयजल उपलब्ध कराने की बात कही थी, लेकिन आज भी यहां पानी के लिए मारामारी है। गोद लिए गांव चीनोर की तस्वीर भी नहीं बदल पाए।
डबरा में आइसीयू शुरू कराने की घोषणा पूरी नहीं हो पाई।
अवैध खनन पर रोक लगवाने की बात कही थी, लेकिन करैरा, ग्वालियर ग्रामीण, डबरा में अवैध उत्खनन बड़ी तेजी से चल रहा है।
डबरा की गन्ना शुगर मिल के किसानों और ग्वालियर के जेसी मिल मजदूरों को बकाया राशि दिलाने का वादा किया था, वह अभी तक पूरा नहीं हो पाया है।
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का निर्माण कार्य साढ़े चार साल बाद भी अधूरा।
जहां रहे सक्रिय वहीं मिली हार
तो मर की सक्रियता सबसे अधिक शहरी क्षेत्र की सीटों पर थी। सांसद निधि से जीवाजी विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक भवन निर्माण, सरस्वती शिशु मंदिर डबरा के भवन निर्माण के लिए मदद की। शिक्षण संस्थानों और स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक खर्च किया, लेकिन जनता की उन उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाए, जिसकी केंद्रीय मंत्री के तौर पर उनसे उम्मीद थी।
हमारे सांसद केन्द्र में मंत्री बन गए, प्रधानमंत्री मोदी के नजदीकी भी हैं, इसके बाद भी हमें अभी तक गन्ना की बकाया राशि नहीं मिली है। इसी वजह से उनकी पार्टी चुनाव हार गई।
रामनिवास सोनी, किसान, डबरा
विनोद तिवारी, करैरा
दिलीप सिंह, ठेकेदार, ग्वालियर