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भोपाल

सवर्णों की नाराजगी ने केंद्रीय मंत्री तोमर की सीट के बदले समीकरण

विधानसभा चुनाव में ढहा भाजपा किला, अब लोकसभा सीट छोडऩे की चर्चा
 

भोपालJan 02, 2019 / 10:46 pm

anil chaudhary

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ग्वालियर. एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव को लेकर हिंसक आंदोलन और सवर्णों में उपजी नाराजगी ने केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ग्वालियर सीट के समीकरण उलट-पलट दिए हैं। 2013 में ग्वालियर लोकसभा सीट के आठ विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा ने पांच पर जीत दर्ज की थी।
यहां से तीन मंत्री बनाए गए, इस बार भाजपा एक मात्र सीट को छोड़कर बाकी सभी हार गई। इस तरह भाजपा का यह किला ढह गया है। नए समीकरणों से 2019 में वे कड़ी चुनौती से घिर गए हैं। लोकसभा चुनाव 2014 में तोमर की जीत में सबसे बड़ी भूमिका ग्वालियर के शहरी क्षेत्र की रही। आठ में से चार विधानसभा क्षेत्रों में पिछडऩे के बाद भी तीन शहरी विधानसभा ग्वालियर शहर, पूर्व और दक्षिण से बंपर बढ़त ने राह आसान कर दी थी, लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी यहां बड़े अंतर से हारी है।
ग्वालियर जिले की तीन ग्रामीण और दतिया जिले की दो सीटों में से उसे एक सीट मिली है। अगर 2018 के विधानसभा चुनाव से 2014 के लोकसभा चुनाव का विश्लेषण करें तो भाजपा 1.15 लाख से अधिक वोटों से पिछड़ चुकी है। पार्टी और केंद्रीय मंत्री तोमर के लिए शहरी इलाका हाथ से जाने से चिंता का विषय बन गई है।
तोमर का कद बढ़ा, ग्वालियर वहीं ठिठका
ग्वालियर सीट से जीतने के बाद नरेंद्र सिंह तोमर का सत्ता और संगठन में कद बढ़ा। पहले उन्हें केंद्र में खान मंत्रालय मिला, फिर पंचायत एवं ग्रामीण विकास जैसे बड़े महकमे के मंत्री बने। अनंत कुमार के निधन के बाद संसदीय कार्य मंत्रालय भी उन्हीं के पास है। विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रदेश चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। इतना कद बढऩे के बाद भी उनका संसदीय क्षेत्र ग्वालियर वहीं का वहीं ठिठका रह गया। कांग्रेस के कद्दावर नेता स्व माधवराव सिंधिया जैसा प्रभाव छोडऩे में वे नाकाम रहे। केंद्र में उनकी ताकतवर मौजूदगी के बाद भी ग्वालियर-चंबल को कोई बड़ी उपलब्धि नहीं मिल पाई।
सीट बदलने की चर्चा
तोमर के सीट बदलने की चर्चा भी है। सुषमा स्वराज के चुनाव लडऩे से इनकार के बाद भाजपा की सबसे सुरक्षित भोपाल या फिर विदिशा से उन्हें उतारने पर पार्टी विचार कर रही है। तोमर 2009 में मुरैना फिर 2014 में ग्वालियर से जीते थे।
घोषणाएं जो अधूरी रह गईं
तोमर ने डबरा और भितरवार क्षेत्र को भरपूर पेयजल उपलब्ध कराने की बात कही थी, लेकिन आज भी यहां पानी के लिए मारामारी है। गोद लिए गांव चीनोर की तस्वीर भी नहीं बदल पाए।
डबरा में आइसीयू शुरू कराने की घोषणा पूरी नहीं हो पाई।
अवैध खनन पर रोक लगवाने की बात कही थी, लेकिन करैरा, ग्वालियर ग्रामीण, डबरा में अवैध उत्खनन बड़ी तेजी से चल रहा है।
डबरा की गन्ना शुगर मिल के किसानों और ग्वालियर के जेसी मिल मजदूरों को बकाया राशि दिलाने का वादा किया था, वह अभी तक पूरा नहीं हो पाया है।
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का निर्माण कार्य साढ़े चार साल बाद भी अधूरा।
– ये था वोटों का गणित
जहां रहे सक्रिय वहीं मिली हार
तो मर की सक्रियता सबसे अधिक शहरी क्षेत्र की सीटों पर थी। सांसद निधि से जीवाजी विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक भवन निर्माण, सरस्वती शिशु मंदिर डबरा के भवन निर्माण के लिए मदद की। शिक्षण संस्थानों और स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक खर्च किया, लेकिन जनता की उन उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाए, जिसकी केंद्रीय मंत्री के तौर पर उनसे उम्मीद थी।
हमारे सांसद केन्द्र में मंत्री बन गए, प्रधानमंत्री मोदी के नजदीकी भी हैं, इसके बाद भी हमें अभी तक गन्ना की बकाया राशि नहीं मिली है। इसी वजह से उनकी पार्टी चुनाव हार गई।
रामनिवास सोनी, किसान, डबरा
ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में करैरा विधानसभा आता है। यहां न तो पीने के पानी के पर्याप्त इंतजाम हैं और न ही अच्छी सड़कें हैं। सांसद ने इस क्षेत्र में खास ध्यान नहीं दिया है।
विनोद तिवारी, करैरा
ग्वालियर का विकास जिस गति से होना था, वह नहीं हुआ। तोमर ने शहर पर सबसे ज्यादा फोकस किया, मगर यहां भी राजनीति के चलते ज्यादा काम नहीं हो सके।
दिलीप सिंह, ठेकेदार, ग्वालियर
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