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भोपाल

मध्यप्रदेश में फिर बन सकता है टाइगर स्टेट, जानें क्यों और कैसे

– जंगल से आ रही अच्छी खबर : 308 से बढ़कर 415 बाघ होने का अनुमान- वर्षों से दबे हैं चार नेशनल पार्क और सेंचुरी के प्रस्ताव

भोपालJul 04, 2019 / 11:08 pm

anil chaudhary

Sariska Tiger Death : Sariska Tiger ST-16 Death Photos

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अशोक गौतम, भोपाल. प्रदेश के जंगलों से अच्छी खबर आई है। कैमरा ट्रेपिंग, पगमार्क और वैज्ञानिक आधारों पर की गई गणना में बाघ 308 से बढ़कर 415 होने का अनुमान है। इससे प्रदेश को नौ साल बाद फिर से टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने की उम्मीद जागी है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) देहरादून राष्ट्रीय बाघ आकलन-2018 की रिपोर्ट 15 दिन में सार्वजनिक कर सकता है।
एनटीसीए ने दिसंबर 2017 से अप्रेल 2018 के बीच देशभर के सभी संरक्षित और गैर संरक्षित क्षेत्रों में बाघों की गिनती करवाई है। यह गिनती चार साल में एक बार होती है। 2014 की गणना में प्रदेश में 308 बाघों की उपस्थिति के प्रमाण मिले थे। इस बार 415 से अधिक बाघों की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं।
बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए राज्य सरकार ने प्रदेश में नए नेशनल पार्क और सेंचुरी के लिए अभ्यारणों को टाइगर रिजर्व बनाने की है। इसके लिए ओंकारेश्वर नेशनल पार्क, मांधाता, सिंगाजी और रातापानी अभ्यारण को टाइगर रिजर्व क्षेत्र बनाने पर विचार कर रहा है। दरअसल, पार्क और सेंचुरी में बाघों की संख्या बढऩे से वे आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में आने लगे हैं। इससे मानव संघर्ष की घटनाओं में तो इजाफा तो हुआ है। तस्करों के लिए इनका शिकार भी आसान हो गया है।
– कमलनाथ ने 1991 में दिया था टाइगर स्टेट का दर्जा
तत्कालीन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री कमलनाथ ने 1991 में फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (आइआइएफएम) में एक कार्यक्रम में प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिया था। उन्हें वन विभाग के अफसरों ने बताया कि प्रदेश में 900 से अधिक बाघ हैं, तब मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग नहीं हुआ था। कमलनाथ अब प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
– 2010 में छिना था टाइगर स्टेट का तमगा
मध्यप्रदेश से टाइगर स्टेट का तमगा वर्ष 2010 में तब छिन गया था, जब 2006 की गणना के मुकाबले बाघों की संख्या 300 से घटकर 257 रह गई थी। 300 बाघों के साथ यह कर्नाटक टाइगर स्टेट बना था। कर्नाटक ने 2014 की बाघ गणना में 406 बाघों की गिनती कराकर अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रखा। जबकि 2006 में कर्नाटक में 290 बाघ थे और उनकी संख्या लगातार बढ़ती गई। 2014 की गणना में प्रदेश में 308 बाघ पाए गए थे।
प्रदेश में बाघों की गणना में यह बात सामने आई है कि बाघों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। एसएफआरआइ जबलपुर ने बाघों की गणना का डेटा एनटीसीए को भेज दिया है। संभावना है कि 15 दिन में रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाएगी।
– यू प्रकाशम, पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ

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