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भोपाल

केरवा में घूम रही बाघिन टी-123 व शावकों की सुरक्षा में चूक

लापरवाही कहीं न ले ले जान

भोपालJul 09, 2018 / 07:17 am

Rohit verma

TIGER

केरवा में घूम रही बाघिन टी-123 व शावकों की सुरक्षा में चूक

भोपाल. केरवा इलाके में रह रही बाघिन टी-123 का सामना आए दिन राहगीरों से हो रहा है। शावकों संग सडक़ किनारे घूमने वाली इस बाघिन तक निगरानी टीम को पहुंचने में अक्सर देरी हो जाती है। बाघिन का मूवमेंट पता करने कॉलर आइडी लगाना सटीक तरीका है, लेकिन शहर से सटे जंगलों में इसका प्रयोग करने में वन विभाग पीछे हट रहा है।

अधिकारी तर्क दे रहे हैं, वाहनों की आवाजाही वाले इलाके में कॉलर आइडी के सिग्नल डि-कोड और चोरी किए जा सकते हैं। इससे बाघिन की जान खतरे में पड़ सकती है। वन विशेषज्ञों का कहना है कि सटीक निगरानी के लिए कई तकनीक उपलब्ध हैं।

विभाग इनके उपयोग में लापरवाही बरत रहा है। ये हालत तब है जब पिछले दिनों अज्ञात बाइक और कार सवारों ने बाघिन और शावकों को परेशान किया था, तब मौके पर वन अमला मौजूद नहीं था। बाघिन व उसके परिवार की सुरक्षा को लेकर खतरा पैदा हो गया है। इसको देखते हुए बाघिन को रेडियो कॉलर लगाने का प्रस्ताव आया, पर अधिकारियों ने नकार दिया। विभाग के जनसम्पर्क प्रभारी ने बताया कि कॉलर आइडी के उपयोग का अध्ययन कर रहे हैं।

यह तकनीक व्यवहारिक रूप से खर्चीली व जटिल है। फिलहाल बाघिन की सुरक्षा के लिए इआई टॉवर से सर्विलांस करके की जाती है। जल्द ही 12 किमी लंबी और चार मीटर ऊंची फेंसिंग लगाकर सुरक्षा चाकचौबंद की जाएगी। यह तरीका पूरी तरह से कारगर नहीं माना जा सकता, क्योंकि तस्कर हाइटेक तकनीक से लैस हैं।
शहर सीमा से सटे केरवा में घूम रही बाघिन और शावकों को वन विभाग जानबूझकर खतरे में डाल रहा है। कॉलर आइडी लगाना लोकेशन ट्रैक करने का सटीक तरीका है, लेकिन इसका प्रयोग नहीं किया जा रहा। इसी तरह ड्रोन कैमरे और थर्मल इमेजिंग कैमरे जैसी आधुनिक तकनीक उपलब्ध है, लेकिन इनका भी प्रयोग नहीं किया जा रहा है।
अजय दुबे, आरटीआइ एक्टिविस्ट

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