अधिकारी तर्क दे रहे हैं, वाहनों की आवाजाही वाले इलाके में कॉलर आइडी के सिग्नल डि-कोड और चोरी किए जा सकते हैं। इससे बाघिन की जान खतरे में पड़ सकती है। वन विशेषज्ञों का कहना है कि सटीक निगरानी के लिए कई तकनीक उपलब्ध हैं।
विभाग इनके उपयोग में लापरवाही बरत रहा है। ये हालत तब है जब पिछले दिनों अज्ञात बाइक और कार सवारों ने बाघिन और शावकों को परेशान किया था, तब मौके पर वन अमला मौजूद नहीं था। बाघिन व उसके परिवार की सुरक्षा को लेकर खतरा पैदा हो गया है। इसको देखते हुए बाघिन को रेडियो कॉलर लगाने का प्रस्ताव आया, पर अधिकारियों ने नकार दिया। विभाग के जनसम्पर्क प्रभारी ने बताया कि कॉलर आइडी के उपयोग का अध्ययन कर रहे हैं।
अजय दुबे, आरटीआइ एक्टिविस्ट