कोलारस से पार्टी ने देवेन्द्र जैन को उम्मीदवार बनाया है, ये वही देवेन्द्र जैन हैं जो उस वक्त भी चुनाव हार गए थे, जब मध्यप्रदेश में भाजपा जीत के चरम पर थी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जादू प्रदेश भर में सर चढ़ कर बोल रहा था। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स कहते हैं कि कोलारस से भाजपा के जिलाध्यक्ष सुशील रघुवंशी एक दमदार प्रत्याशी साबित हो सकते थे, इतना ही नहीं गांव गांव तक पहुंच रखने वाले पूर्व विधायक वीरेन्द्र सिंह रघुवंशी के नाम पर भी विचार किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और देवेन्द्र जैन का नाम चुनकर उसे दिल्ली भेज दिया गया। चुना और पैनल में एकमात्र नाम दिल्ली भेज दिया।
बहरहाल कोलारस विधानसभा से भाजपा ने अपने प्रत्याशी के तौर पर पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन का नाम भेजा था, जिसे चुन लिया गया है। भारतीय जनता पार्टी देवेन्द्र जैन की जीत को लेकर काफी आश्वस्त नजर आ रही है, लेकिन इतिहास उठाकर देखें तो कहानी कुछ और ही कहती है। देवेन्द्र जैन अब विधानसभा सीट के लिए चुनाव लड़ेंगे, लेकिन इसके पहले हुए कई छोटे बड़े चुनावों में उन्हें जीत का स्वाद चखने तक को नहीं मिला। इतना ही नहीं, जिस बार वे विधायक चुने गए थे तब भी उनकी जीत का अंतर काफी कम था।
पिछले चुनाव यानि साल 2013 में भी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया था, ये वो समय था जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज सिंह चौहान दो कार्यकाल पूरे कर चुके थे और प्रदेश भर में पार्टी अपनी बड़ी जीत के लिए आश्वस्त हो चुकी थी। उस समय प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की लहर थी तो दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी के नाम पर मुहर लगती नजर आ रही थी। इसका प्रभाव में मध्यप्रदेश में काफी हद तक पहुंच चुका था। नतीजे आए तो कई ऐसे चेहरे जिनकी जीत की उम्मीद न के बराबर थी, वे जीत गए लेकिन देवेन्द्र जैन को 25000 वोटों से करारी शिकस्त मिली थी।
इससे पहले 2008 के चुनाव में दिग्विजय विरोधी लहर के वक्त देवेन्द्र जैन को जीत हासिल हुई थी, लेकिन उनकी जीत का अंतर बहुत कम था। तब देवेन्द्र जैन सिर्फ 283 वोटों से जीते थे। इतने कम वोटों से मिली जीत को बड़ी जीत नहीं माना गया था। वहीं शिवपुरी नगरपालिका अध्यक्ष के लिए हुए चुनाव में तो देवेन्द्र जैन निर्दलीय प्रत्याशी जगमोहर सिंह सैंगर से ही हार गए थे। वैसे राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में ही देवेन्द्र जैन को हार नहीं मिली। देवेन्द्र जैन ने जब पार्टी में भी जिलाध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था उस वक्त भी कार्यकर्ताओं ने उन्हें हरा दिया था। उनके विरोधी नरेन्द्र बिरथरे को कार्यकर्ताओं ने जिलाध्यक्ष बनाया था।
उपलब्धियां कम हैं, हार ज्यादा
चलिए अब एक नजर डालते हैं देवेन्द्र जैन के चुनावी इतिहास पर, जिसमें हमें उपलब्धियां कम और हार ज्यादा नजर आती हैं।
– 1993 में राजनीति की शुरूआत करने वाले देवेन्द्र जैन राजमाता विजयाराजे सिंधिया के नाम पर पहली बार विधायक बने।
– 1998 में इन्हें फिर से टिकट मिलने का इंतजार था, देवेन्द्र जैन 2 ट्रक प्रचार सामग्री रख कर तैयार बैठे रहे, लेकिन आखिर तक उन्हें टिकट नहीं मिला।
– इसके बाद उन्होंने भाजपा में जिलाध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। नरेन्द्र बिरथरे को जिलाध्यक्ष बनाया गया।
– शिवपुरी नगरपालिका अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़े, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी जगमोहन सिंह सेंगर से हार गए।
– 2008 में कोलारस विधानसभा से जीत मिली, लेकिन मात्र 283 वोटों से।
– 2013 में शिवराज सिंह की लहर होते हुए भी देवेन्द्र जैन को 25000 वोटों से शर्मनाक हार मिली।
पिछली हार का सदमा देवेन्द्र जैन को इस कदर लगा था कि उन्होंने तीन साल तक क्षेत्र की ओर मुंह उठाकर नहीं देखा। आगामी उपचुनाव के साथ जैन एक बार फिर से वापसी करने जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान एवं सीएम शिवराज सिंह की रजामंदी के बाद ही उनका टिकट फाइनल किया गया है। लेकिन टिकट फाइनल होने के बाद सभी के होठों पर बार बार एक ही सवाल लौट रहा है कि अगर इतिहास ने एक बार फिर से अपने आप को दोहरा दिया तो भाजपा के लिए सत्ता का सेमीफाइनल कहीं मुश्किलों भरा न हो जाए, क्योंकि ये चुनावी साल है और एक गलत फैसला पार्टियों को किस हद तक नुकसान पहुंचा जा सकता है, इस बात से कोई भी अनजान नहीं है।