दरअसल, कांग्रेस ने जब प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाला था तो चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया को बनाया। चुनाव प्रबंधन की कमान कमलनाथ को सौंपी और दिग्विजय सिंह को पर्दे के पीछे से काम करने को कहा। सरकार बनी तो कमलनाथ मुख्यमंत्री बन गए, दिग्विजय सिंह की भूमिका सरकार में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। अब बचे सिंधिया, वह अपनी भूमिका को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं। कई मोर्चों पर वह खुलेआम बोल चुके हैं कि अपनी ही सरकार में उनकी नहीं चलती है। सत्ता में हिस्सेदारी के लिए उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर दावेदारी जताई तो दिग्विजय सिंह और कमलनाथ खेमे ने विरोध कर दिया। हालत यह हुए कि नाम की घोषणा होते—होते रुक गई। बस यहीं से सिंधिया का बागी सुर शुरू हो गया और कमलनाथ से खराब होते रिश्ते और ज्यादा खराब हो गए।
राज्यसभा के लिए खामोशी
सिंधिया अपने तल्ख तेवर तो दिखाना चाहते हैं लेकिन राज्यसभा की खाली हो रही सीटों के कारण चुप हैं। 9 अप्रैल 2020 को राज्यसभा की तीन सीटें खाली हो रही हैं, जिनमें एक कांग्रेस के पास है जबकि दो भाजपा के पास हैं। कांग्रेस से दिग्विजय सिंह और भाजपा से सत्यनारायण जटिया और प्रभात झा हैं। कांग्रेस को भरोसा है कि वह दो सीटें जीतने में कामयाब रहेगी। ऐसे में एक पर दिग्विजय सिंह वापसी भी कर लेते हैं तो दूसरी सीट सिंधिया को मिल सकती है। हालांकि एक धड़ा यह सीट भी सिंधिया को देने के पक्ष में नहीं है। लेकिन सिंधिया खेमा अभी इस पर कोई विवाद नहीं चाहता है, इसीलिए खामोश है। अगर राज्यसभा में जगह नहीं मिली तो तय है कि सिंधिया किसी बड़े फैसले की ओर बढ़ सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस को प्रदेश में मुश्किलें हो सकती हैं।
सिंधिया अपने तल्ख तेवर तो दिखाना चाहते हैं लेकिन राज्यसभा की खाली हो रही सीटों के कारण चुप हैं। 9 अप्रैल 2020 को राज्यसभा की तीन सीटें खाली हो रही हैं, जिनमें एक कांग्रेस के पास है जबकि दो भाजपा के पास हैं। कांग्रेस से दिग्विजय सिंह और भाजपा से सत्यनारायण जटिया और प्रभात झा हैं। कांग्रेस को भरोसा है कि वह दो सीटें जीतने में कामयाब रहेगी। ऐसे में एक पर दिग्विजय सिंह वापसी भी कर लेते हैं तो दूसरी सीट सिंधिया को मिल सकती है। हालांकि एक धड़ा यह सीट भी सिंधिया को देने के पक्ष में नहीं है। लेकिन सिंधिया खेमा अभी इस पर कोई विवाद नहीं चाहता है, इसीलिए खामोश है। अगर राज्यसभा में जगह नहीं मिली तो तय है कि सिंधिया किसी बड़े फैसले की ओर बढ़ सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस को प्रदेश में मुश्किलें हो सकती हैं।
सिंधिया खेमे के विधायकों पर नजर
सिंधिया खेमे में करीब 15—16 विधायक हैं। इन पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। दोनों ही पार्टियां मानकर चल रही हैं कि अगर सिंधिया ने कोई फैसला पार्टी लाइन से हटकर लिया तो यह विधायक उनके साथ जा सकते हैं। ऐसे में इन पर डोरे डालने की कोशिश दोनों तरफ से होगी। भाजपा जहां इन्हें अपने लिए उपयोग करना चाहेगी। वहीं, कांग्रेस ने अभी से इन विधायकों को कमलनाथ खेमे में शामिल कराना शुरू कर दिया है। इन्हीं में से एक केपी सिंह हैं, जो पाला बदलकर अब कमलनाथ खेमे में आ गए हैं। कई और भी हैं जो मौके पर अपना चेहरा दिखाएंगे।
सिंधिया खेमे में करीब 15—16 विधायक हैं। इन पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। दोनों ही पार्टियां मानकर चल रही हैं कि अगर सिंधिया ने कोई फैसला पार्टी लाइन से हटकर लिया तो यह विधायक उनके साथ जा सकते हैं। ऐसे में इन पर डोरे डालने की कोशिश दोनों तरफ से होगी। भाजपा जहां इन्हें अपने लिए उपयोग करना चाहेगी। वहीं, कांग्रेस ने अभी से इन विधायकों को कमलनाथ खेमे में शामिल कराना शुरू कर दिया है। इन्हीं में से एक केपी सिंह हैं, जो पाला बदलकर अब कमलनाथ खेमे में आ गए हैं। कई और भी हैं जो मौके पर अपना चेहरा दिखाएंगे।
मनाने के लिए तन्खा ही क्यों
दरअसल, विवेक तन्खा के रिश्ते कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों से ही बेहतर हैं। दोनों को कानूनी सलाह भी देते हैं। ऐसे में पार्टी को भरोसा है कि दोनों ही नेता विवेक तन्खा की बात को तवज्जो देंगे। ऐसे में पार्टी की सरकार भी सुरक्षित रहेगी और भविष्य का संभावित चेहरा भी सरकार के साथ मिलकर काम करेगा। हालांकि तन्खा इसमें कितने कामयाब होंगे, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। दोनों ही नेता अपने—अपने पाले में बैठकर शह और मात का खेल खेल रहे हैं।
दरअसल, विवेक तन्खा के रिश्ते कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों से ही बेहतर हैं। दोनों को कानूनी सलाह भी देते हैं। ऐसे में पार्टी को भरोसा है कि दोनों ही नेता विवेक तन्खा की बात को तवज्जो देंगे। ऐसे में पार्टी की सरकार भी सुरक्षित रहेगी और भविष्य का संभावित चेहरा भी सरकार के साथ मिलकर काम करेगा। हालांकि तन्खा इसमें कितने कामयाब होंगे, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। दोनों ही नेता अपने—अपने पाले में बैठकर शह और मात का खेल खेल रहे हैं।