सन 617 में बना, मोदी और नेहरू ने किया दर्शन
लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का प्राचीनतम मुख्यमंदिर है। यह भगवान त्रिभुनेश्वर को समर्पित है। इसे सन 617-657 में लाटेंडुकेशरी ने बनवाया था। इसका वर्तमान स्वरूप सन 1090-1104 में बना था। इसके कुछ हिस्से 1400 साल से भी पुराने बताए जाते हैं। लिंगराज मंदिर का वर्णन छठीं शताब्ती के लेखों में मिलता है। यह उत्तर भारत के मंदिरों में रचना सौंदर्य तथा शोभा और अलंकरण में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह अनुपम स्थापत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध है। उल्लेखनीय हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) 15 अप्रैल 2017 को लिंगराज मंदिर आए थे। इससे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू भी यहां आ चुके हैं।
इसकी दुर्दशा और जीर्णशीर्ण स्वरूप को लेकर एएसआई को प्रेषित पत्र में कहा गया है कि मुख्य मंदिर में दरारें (क्रैक्स) दिख रही हैं। मंदिर के ऊपरी हिस्से में ध्वज लगाने जाने वालों ने यह अपनी आंखों से देखा है और रिपोर्ट दी है। एएसआई का भी ध्यानाकर्षित किया गया है। कमिश्नर ने यह भी पत्र में लिखा है कि मुख्य मंदिर के बाहरी हिस्सों में मूर्तियां खण्डित हो रही हैं। इनकी पवित्रता और स्वरूप बनाए रखने की महती जरूरत है। उनका कहना है कि मंदिरों के स्ट्रक्चरों की साफ सफाई हर साल होनी चाहिए पर एएसआई ने बीते चार साल से इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। रखरखाव का उचित मानक के अभाव में इनका संरक्षण उचित ढंग से नहीं हो पा रहा है।
इसके अलावा लिंगराज मुख्यमंदिर के ज्वाइंट्स रिपेयर करने की भी फौरन जरूरत है। जगमोहन, पार्वती, रोसासला पैसेज, भोगमंडप, विश्वकर्मा मंदिर, भुवनेश्वर मंदिर, एकाम्रेश्वर मंदिर, उग्रेश्वर महादेव, व गणेश मंदिर पर भी काम की जरूरत है।
लिंगराज मंदिर के चार प्रमुख हिस्सों विमान, जगमोहन, नटमंदिर और भोग मंडप में रिपेयरिंग वर्क होना चाहिए। इसके अलावा एएसआई राज्य सरकार से सामंजस्य बनाकर लिंगराज मंदिर के 100 मीटर के दायरे में अतिक्रमण साफ करवाए। कमिश्नर ने डीजी एएसआई को भेजे पत्र में यह भी कहा है कि मेंटीनेंस को लेकर लिंगराज मंदिर समिति की तिमाही बैठक में एएसआई का भी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए।
स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है मंदिर
लिंगराज मंदिर की प्रत्येक शिला पर कारीगरी और मूर्तिकला का चमत्कार दिखता है। इसके शिखर भारतीय मंदिरों के शिखरों के विकास क्रम में प्रारम्भिक अवस्था का माना जाता है। यह नीचे तो प्रायः सीधा तथा समकोण है किंतु ऊपर पहुंचकर धीरे-धीरे वक्र होता चला गया। और शीर्ष पर वर्तुल दिखाई देता है। सुंदर नक्काशी भी की गई है। मंदिर के शिखर की ऊँचाई 180 फुट है।