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बीकानेर

सालों पुराने आवंटनों पर अब दर्ज नहीं होंगे भूमि के इंतकाल

पत्रिका लगातार….1971, 1984-85 और 1991 के फर्जी आवंटन पत्रों से घोटालों को दिया अंजाम। अब तक 20 हजार बीघा भूमि के अलग-अलग स्तर पर गड़बड़ी के साक्ष्य मिले।

बीकानेरMay 16, 2024 / 02:03 pm

dinesh kumar swami

बीकानेर जिले में 20 हजार बीघा से ज्यादा भूमि का मोटे तौर पर फर्जीवाड़ा करने का पता चल चुका है। इसमें 8 हजार बीघा से ज्यादा भूमि अकेले छत्तरगढ़ उपखण्ड क्षेत्र में पता लगी है। दो हजार बीघा से ज्यादा भूमि पूगल में पता चल चुकी है। शेष भूमि की जिला प्रशासन की जांच कमेटी कागजात जुटा रही है।
बीते पांच साल में सबसे ज्यादा भूमि आवंटन फर्जीवाड़ा का खेल चला है। इतने बड़े पैमाने पर भूमि घोटाले को मुख्य रूप से उपनिवेशन विभाग की ओर से वर्ष 1971, 1984-85 और 1991 में हुए आवंटनों के फर्जी कागजात बनाकर अंजाम देना सामने आया है। इसके बाद जिला प्रशासन ने एक बार मौखिक रूप से सभी उपखण्ड अधिकारियों और तहसीलदारों को किसी भी पुराने आवंटन के आधार पर भूमि का इंतकाल नहीं दर्ज करने के लिए कहा है। इस संबंध में राज्य सरकार के स्तर पर ही कोई आदेश जारी कराने के लिए सरकार को अवगत कराया गया है।
भूदान बोर्ड की अनुशंसा के बिना ही तहसीलदार छत्तरगढ़ की ओर से जमीनों के आवंटन के कागजात सामने आए हैं। इसके बाद वन भूमि, अराजीराज सरकारी भूमि के बाद अब भूदान बोर्ड की जमीनों के घोटाला किया होना और जुड़ गया है।

50 साल में बदल गई पीढ़ी, खाली कागजाें का दुरुपयोग

जिले में बीते पांच साल के दौरान चार-पांच दशक पुरानी रसीदें, जमीन आवंटन पत्र आदि कागजात के आधार भूमि के इंतकाल दर्ज किए गए हैं। अधिकांश मामलों में तो मूल आवंटी के निधन होने अथवा उनके वारिसों की ओर से दावे करने के मामले सामने आए हैं। साथ ही कुछ में मिलते-जुलते नाम वालों के आधार कार्ड का उपयोग कर उनके नाम से भूमि आवंटन करवाकर आगे बेचने के प्रकरण भी हैं। ऐसे भी प्रकरण सामने आए हैं कि मूल आवंटी को पता ही नहीं है। उसके नाम से भूमि आवंटित कर उसे आगे बेचान कर दी गई है। यह भूमि उस समय भूमिहीनों को काश्त करने के लिए आवंटित की गई थी। चार-पांच दशक में आवंटन का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो चुका है। सबसे बड़ी बात यह है कि शत-प्रतिशत फर्जीवाड़ा का ही खेल चलने लग गया है। ऐसे में इस तरह के पुराने किसी भी आवंटन की अब सरकार के स्तर पर ही वैधता समाप्त करने की प्रक्रिया करवाने के लिए सीएमओ को अवगत कराया गया है।

सालों से जमे बैठे कार्मिकों की भूमिका संदिग्ध

राजस्व, उपनिवेशन, तहसीलों, वन विभाग में कई कार्मिक सालों से एक ही जगह कार्यरत हैं। इन्हें सभी पुराने कागजातों की जानकारी है। भूमि माफिया ऐसे लोगों के सांठगांठ कर सरकारी प्रक्रिया में सेंध लगा रहे हैं। कई विभागों में तो अन्य विभागों के कार्मिक डेपुटेशन पर जमे बैठे यही फर्जीवाड़ा के कार्य कर रहे हैं। पुराने दस्तों और फाइलों को खोलकर उनमें आवंटन संबंधी कागजातों से आवंटी के नाम आदि का पता लगाकर उसके फर्जी कागजात तक तैयार करने में लिप्त हैं। ऐसे में जिले भूमि फर्जीवाड़ा पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे कार्मिकों को भी प्रशासन चिहिन्त करने की तैयारी में है।

खुली बोली से मिल सकता है बड़ा राजस्व

पिछले सालों में कई बड़ी कम्पनियों को सोलर प्लांट लगाने के लिए भी सरकार ने डीएलसी पर जमीनें दी हैं। जबकि निजी कम्पनियां डीएलसी से कई गुणा कीमत पर किसानों से जमीन खरीदकर प्लांट भी लगा रही हैं। जिले में हजारों हेक्टेयर भूमि अभी भी अराजीराज है। जिसे खुली बोली पर नीलाम कर सरकार करोड़ों रुपए का राजस्व जुटा सकती है।

अब तक यह पता चला चुका

– 6125 बीघा भूमि घोटाले का छत्तरगढ़ में हो चुका खुलासा।

– 1200 बीघा वन भूमि का फर्जीवाड़ा अकेले छत्तरगढ़ में।

– 74 बीघा वनभूमि खाजूवाला क्षेत्र में रिकॉर्ड से गायब।
– 6 हजार बीघा भूदान बार्ड की भूमि के हेरफेर की आशंका।

– 650 बीघा वनभूमि के नामांतरण करने के कागजों की जांच जारी।

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