जीवन का आनंद लेना है तो सुबह जल्दी उठने की ऐसे डालें आदत
आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘चरक संहिता’ से लेकर देश-दुनिया में हुई रिसर्च ने भी उपवास के अनेकों लाभ बताए हैं। हमारा बिगड़ा खानपान और पाचन सही हो जाए यही उपवास का मुख्य शारीरिक ध्येय है। पेट को किसी टीन-कनस्तर की तरह ठूंस-ठूंस कर भरने की प्रवृत्ति को कम करने का यह एक माध्यम है।
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ग्रंथों में बताया गया है कि उपवास शारीरिक स्थिति एवं रोग के अनुसार 2-3 दिन से लेकर निरन्तर दो मास तक किया जा सकता हैं। एक सप्ताह से अधिक का उपवास लम्बे उपवास की श्रेणी में आता हैं। लम्बा उपवास अत्यन्त सावधानी पूर्वक विधिवत किया जाना चाहिए, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि का भय रहता हैं। लम्बे उपवास तोडऩे में काफी सावधानी बरतनी चाहिए। नींबू के पानी या सन्तरे-मौसमी आदि के रस से तोडऩा चाहिए। फिर एक दिन तक मौसम के फल लेने चाहिए। जितने दिन तक उपवास किया गया हो, उसके चौथाई समय तक फल लेने चाहिए, उसके बाद ही अन्न खाना चाहिए। उपवास के तुंरत बाद वर्जित भोजन लेना प्रारंभ न करें क्योंकि ऐसा करने पर उपवास का लाभ जाता रहेगा।
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उपवास जोश की नहीं होश में रहकर की जाने वाली एक उपचार क्रिया है। यदि कोई व्यक्ति बीमार हो या बीमारी से उठा हो तो उसे बिना किसी डर या बहकावे में आकर शारीरिक क्षमता का ध्यान रख कर ही, उपवास करने का फैसला करना चाहिए। भी किसी खास वजह से किए जा रहे उपवास को लेकर दुराग्रह या हठधर्मिता न करें। उपवास मन तथा शरीर की शुद्धता के लिए ही रखा जाता है ऐसे में इनके बहाने अपने ही प्रति इतने कठोर नहीं हों कि शरीर उसे सहन ही न कर पाए। एक-दो दिन का उपवास तो ठीक है किन्तु अधिक दिनों का उपवास चिकित्सक या किसी जानकार की देख-रेख में ही करें।