यह है समस्या
उम्र बढऩे के साथ घुटनों के बीच मौजूद कार्टिलेज घिसकर सूखने लगता है। इससे घुटने मोडऩे और चलने-फिरने में तकलीफ होती है। 60 साल की उम्र के बाद ज्यादातर लोगों को ऐसी परेशानी का सामना करना पडता है। इसे प्राइमरी ऑस्टियो ऑथ्राइटिस कहा जाता है। आजकल एक्सरसाइज की कमी, बढ़ते वजन, खानपान में कैल्शियम और विटामिन डी-3 के अभाव की वजह से युवाओं को भी घुटने का दर्द परेशान करने लगा है। ऐसी समस्या को रुमेटाइड आर्थराइटिस कहा जाता है।
मेनोपॉज के बाद समस्या
इसके अलावा मेनोपॉज के बाद स्त्रियों को भी ऐसी समस्या होती है, जिसे पोस्ट मेनोपॉजल ऑस्टियोपोरोसिस कहा जाता है। दरअसल मेनोपॉज के बाद स्त्रियों के शरीर में फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजेन का स्राव कम हो जाता है। यह हॉर्मोन उनकी हड्डियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है। इसकी मात्रा घटने की वजह से हड्डियों से कैल्शियम का रिसाव होने लगता है। यह शरीर का अपना मेकैनिज्म है। जब खून में कैल्शियम की कमी होती है तो उसे पूरा करने के लिए हड्डियों से रक्त कैल्शियम खींचने लगता है। नतीजतन हड्डियां कमजोर पड़ जाती हैं।
यूट्रस रिमूवल सर्जरी
यूट्रस रिमूवल सर्जरी की वजह से भी स्त्रियों के शरीर में एस्ट्रोजन हॉर्मोन की कमी हो जाती है, जो घुटने के दर्द का कारण बन जाती है। जब शरीर में एस्ट्रोजेन की कमी हो जाती है तो खानपान में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाने पर भी उसका लाभ हड्डियों को नहीं मिल पाता। इसी वजह से मेनोपॉज के बाद स्त्रियों को घुटने के दर्द की समस्या परेशान करने लगती है।
वजन ज्यादा होना
शरीर का अधिक वजन भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार है। दरअसल अधिक वजन के दबाव से शॉक एब्जॉर्विंग आर्टिक्यूलर कार्टिलेज घिसने लगते हैं। कार्टिलेज प्रोटीन से बना एक कोमल पदार्थ है, जो घुटने की दोनों हड्डियों के बीच लचीली गद्दी का काम करता है। यह लगभग एक सेंटीमीटर मोटा होता है। इसके घिसने से हड्डियां आपस में टकराने लगती हैं, जिससे पैरों के जोड अंदर की ओर झुक जाते हैं, जिससे उनकी बनावट में टेढ़ापन आ जाता है और पैरों में दर्द भी होता है। इसके लिए आनुवंशिक कारण भी जिम्मेदार हैं।
दर्द का निदान
घुटनों का दर्द होने पर पहले मरीज को दवाओं, संतुलित आहार और फिजियोथेरेपी की मदद से आराम दिलाने की कोशिश की जाती है। कई तरह की एक्सरसाइज व एलाइनमेंट करेक्शन थेरेपी की मदद से घुटने का अलाइनमेंट भी ठीक किया जा सकता है।
दर्द असहनीय न हो तो सबसे पहले घुटने की झिल्ली साइनोवियल मेंब्रेन को हटाकर और आर्थोस्कोपी की मदद से जोड़ के प्रभावित हिस्से को साफ करने से ही मरीजों को राहत मिल जाती है। यदि कार्टिलेज कम क्षतिग्रस्त है और घुटने के जोड़ का अलाइनमेंट बिगड़ गया हो तो हाई टिबियल ऑस्टियोटॉमी की मदद से जोड़ों को सीधा किया जाता है। इस छोटे से ऑपरेशन से कुछ सालों तक दर्द से काफी राहत मिल जाती है।