शोध में कहा गया है कि इनका प्रभाव भविष्य की पीढिय़ों के प्रजनन क्षमता पर पड़ सकता है। यह डीएनए पर असर डाल सकते हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि पैरासिटामॉल सहित कुछ दवाओं का इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान सावधानी से करना चाहिए। ब्रिटेन के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता रॉड मिशेल ने कहा, हम महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान दर्दनिवारक लेने में सावधानी बरतने व मौजूदा दिशा-निर्देशों को पालन करने व कम समय के लिए कम मात्रा में लेने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
टेस्टीकल कैंसर का खतरा
यह तो सभी जानते हैं गर्भावस्था के दौरान महिलाएं पेनकिलर्स लेती हैं, लेकिन चौंकाने वाले आंकड़े हैं कि लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के दौरान सिरदर्द से निजात पाने के लिए दर्दनिवारक दवाएं लेती हैं। दरअसल, इन दर्द निवारक दवाओं के इस्तेमाल से गर्भस्थ शिशु में बनने वाले शुक्राणुओं की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। सिर्फ प्रजनन अंगों में ही नहीं वरन ऐसे होने वाले शिशु को अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्हें टेस्टीकल कैंसर का खतरा हो सकता है।
सेहत पर प्रभाव
गर्भावस्था के दौरान ली जाने वाली दर्दनिवारक दवाओं से मां की सेहत पर तो नकारात्मक प्रभाव बाद में दिखाई देते ही हैं। इसके साथ ही भू्रण के हार्मोन असंतुलन होने लगते हैं, जिससे उसमें विकृतियां बढऩे की संभावना भी बढ़ जाती है।
नपुंसकता का खतरा
गर्भावस्था के दौरान एक समय में एक से ज्यादा और अलग-अलग तरह की दर्द निवारक दवाएं ली जाएं तो ऐसी महिलाओं के बेटों में नपुंसकता का खतरा सात गुना तक बढ़ जाता है। यदि आप गर्भावस्थां के चार से छह महीने के बीच हैं तो आपको कम से कम दर्दनिवारक दवाएं लेनी चाहिए, क्योंकि गर्भावस्था के इस समय में दर्द निवारक दवाएं लेना सबसे ज्यादा खतरनाक होता है।
विकास में आती है बाधा
गर्भावस्था के 4 से 6 महीने के बीच केवल एक दर्द निवारक दवा लेने से भी सामान्य महिलाओं के मुकाबले इन महिलाओं के बच्चों में विकृति का खतरा दोगुना हो जाता है। दर्द निवारक दवाओं से भ्रूण के विकास में बाधा होती है और यह खतरा पैरासीटामोल में जहां दोगुना होता है, वहीं एस्प्रिन या आईबूप्रोफेन से चार गुना तकबढ़ जाता है।