
What is the most dangerous things in the kitchen?
तकनीक ने हमारी जीवनशैली को बेहद प्रभावित किया है। दादी-नानी का 'रसोईघर' अब 'मॉड किचन' में बदल गया है। आधुनिकता और नई तकनीक ने किचन में भी आ गई। नए इलेक्ट्रिक उपकरण, हाईटेक गैजेट्स, किचन एक्सेसरी, नॉनस्टिकी बर्तन, प्लास्टिक कंटेनर्स और जाने क्या-क्या हमारे किचन का हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इनसे हमारी सेहत कितनी सुरक्षित है? दरअसल, आधुनिक बनने की कोशिश में हम अनचाहे-अनजाने खतरों को ही न्योता दे रहे हैं।
प्लास्टिक कटिंग बोर्ड -
सब्जियों को काटने या चॉप करने के लिए आजकल कटिंग बोर्ड भी किचन में खूब इस्तेमाल होने लगा है। लेकिन इसमें भी प्लास्टिक के बोर्ड का चलन है। प्लास्टिक बोर्ड सस्ते और वजन में हल्के होने के कारण रुचिकर ज्यादा होते हैं, वहीं लकड़ी या अन्य किसी वस्तु से बने कटिंग बोर्ड सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद हैं। जानकार कहते हैं कि सब्जियों को काटने के लिए लकड़ी का बना बोर्ड ही उपयोग में लेना चाहिए। प्लास्टिक बोर्ड पर तेज गति व दबाव से चाकू चलाने पर बोर्ड से कटकर प्लास्टिक के टुकड़े भोजन के साथ हमारे खाने में आकर हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
एलुमीनियम फॉइल्स -
एलुमीनियम फॉइल आजकल हर किचन का जरूरी हिस्सा बन चुके हैं। खाने को ताजा और देर तक गर्म रखने के लिए कामकाजी लोग इसका ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ये फॉइल जितने सुविधाजनक हैं, उतने ही नुकसानदायी भी। इटली में हुए एक शोध में यह सामने आया है कि एलुमीनियम फॉइल से करीब 2-6 मिलीग्राम तक एलुमीनियम कंटेट खाने में पहुंच जाता है, जो प्राकृतिक रूप से भोजन का तत्व नहीं है। विभिन्न शोध में सामने आया है कि कैंसर, अल्जाइमर और बांझपन जैसी समस्याओं के लिए खाने में एलुमीनियम भी एक कारण हो सकता है।
नॉन-स्टिक कुकवेयर -
कुछ ऐसा ही असर नॉन-स्टिक बर्तनों का भी है। नॉन-स्टिक पैन पॉलिटेट्राफ्लुरोथेलेन (पीटीएफई) यानी टेफ्लॉन कोटेड होते हैं। इस कोटिंग में फ्लोरोकैटानोइक एसिड होता है, लीवर, आमाशय और टेस्टिस कैंसर का कारण बन सकता है। भारत में भोजन सामान्यत: काफी ऊंचे तापमान पर पकाया जाता है। लिहाजा यह और भी खतरनाक है। ओवरहीटेड नॉन-स्टिक पैन की कोटिंग से बनने वाली गैस 'टेफ्लॉन-फ्लू' की आशंका बढ़ा देती है।
काम की सीख - किसी साधारण पैन में थोड़ा सा नमक डालकर इसे दो मिनट आंच पर रखे। फिर साफ करके इस्तेमाल करें। साधारण पैन भी नॉन-स्टिक का काम कर सकता है।
प्लास्टिक कंटेनर्स -
किचन में प्लास्टिक कंटेनर्स का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। इनके उपयोग से शरीर में कई रसायन चले जाते हैं। प्लास्टिक फूड रैपिंग और प्लास्टिक फीडिंग बोटल्स में प्रयोग किए जाने वाले केमिकल के बारे में माना जाता है कि ये शरीर के हार्मोन्स में इंटरफेयर कर फैट लेवल बढ़ाते हैं। यह कैंसर और प्रजनन से जुड़ी समस्याओं का कारण बन सकता है। यही कारण है कि कई विशेषज्ञ प्लास्टिक की बोतल में पानी भरकर रखने को ठीक नहीं मानते।
सेरेमिक डिशेज और बर्तन -
किचनवेयर में शाामिल सेरेमिक बर्तन भी सेहत के लिए काफी हानिकारक हैं। सेरेमिक बर्तनों के दो प्रकार हैं, ग्लेज्ड व अनग्लेज्ड। ग्लेज्ड बर्तन सामान्यत: रसोई में खाना बनाने के काम आने वाले मोटे बर्तन हैं। लेकिन कुछ अध्ययनों में यह सामने आया है कि सेरेमिक बर्तनों के निर्माण में लीड व कैडमियम का इस्तेमाल होता है, जो भोजन बनाने के दौरान खाद्य सामग्री में पहुंचकर भोजन को विषैला बनाता है। सेरेमिक की तरह मेलामाइन से बने बर्तनों में भोजन को रखने से फोर्मल डीहाईड नामक रसायन निकलने लगता है। यह रसायन यदि अधिक मात्रा में शरीर में प्रवेश कर जाए, तो किडनी में पथरी की समस्या जैसी कई बीमारी हो सकती है।
लोहा ऊष्मा का अच्छा सुचालक है। यह ऊष्मा को सारे बर्तन में आसानी से बराबर बांट देता है। जिससे इन बर्तनों में खाद्य पदार्थ सब ओर से बराबर पकता व सिकता है। लोहे के बर्तन में पकाने पर खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले अम्ल लोहे से प्रतिक्रिया करते हैं। इससे कुछ मात्रा में लोहा भोजन में घुल जाता है, जो हमारे शरीर में खून निर्माण में सहायक होता है। ताम्बा, खाद्य पदार्थों के अम्ल के साथ प्रतिक्रिया करके सीयूएसओए बनाता है। यह खतरनाक होता है। तांबे के बर्तनों का प्रयोग खट्टे खाद्य पदार्थों को पकाने के लिए बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
Published on:
13 Jan 2020 03:19 pm
बड़ी खबरें
View Allबॉडी एंड सॉल
स्वास्थ्य
ट्रेंडिंग
लाइफस्टाइल
