scriptसीधी-सादी भाषा में गीतों को भावनाओं से सजाते थे Qamar Jalalabadi | Qamar Jalalabadi the famous Indian Bollywood poet and lyricist | Patrika News
बॉलीवुड

सीधी-सादी भाषा में गीतों को भावनाओं से सजाते थे Qamar Jalalabadi

हर अंदाज के गीतों में कमर जलालाबादी ( Qamar Jalalabadi ) की शब्दावली ने फूंके जज्बात
जलालाबाद (अब अफगानिस्तान) में जन्मे, असली नाम था ओमप्रकाश भंडारी
छह दशक से हर महीने सुनाई दे रहा है ‘खुश है जमाना आज पहली तारीख है’

मुंबईJan 08, 2021 / 11:29 pm

पवन राणा

सीधी-सादी भाषा में गीतों को भावनाओं से सजाते थे Qamar Jalalabadi

सीधी-सादी भाषा में गीतों को भावनाओं से सजाते थे Qamar Jalalabadi

-दिनेश ठाकुर
पुराने गीत जज्बात के लिफाफे की तरह होते हैं। गुजरे जमाने के पैगाम देते हैं। यादों को हरा-भरा रखते हैं। नई पीढ़ी को उनके पुरखों के दौर से जोड़ते हैं। नुसरत फतेह अली ( Nusrat Fateh Ali ) की कव्वाली ‘मेरे रश्के-कमर’ ( Mere Rashke Qamar ) का रीमिक्स एक फिल्म में पेश किया जाता है, तो नई पीढ़ी को पता चलता है कि अरबी जुबान के लफ्ज ‘कमर’ का मतलब चांद होता है। लेकिन यह पीढ़ी कमर जलालाबादी ( Qamar Jalalabadi ) के बारे में शायद ही जानती हो। कमर जलालाबादी उस दौर के गीतकार थे, जब भारतीय सिनेमा में संगीत का मतलब साधना और गीत का मतलब भावना होता था। उनके रचे हुए गीत कश्मीर से कन्याकुमारी और ढाका से लाहौर तक धूम मचाते थे। यह धूम साहिर लुधियानवी और मजरूह सुलतानपुरी के फिल्मों से जुडऩे से काफी पहले शुरू हो गई थी। कमर जलालाबादी इस लिहाज से खुशनसीब रहे कि शुरुआत में ही उन्हें मास्टर गुलाम हैदर जैसे गुणी संगीतकार का साथ मिल गया। वह गुलाम हैदर ही थे, जिन्होंने सिनेमा को नूरजहां, शमशाद बेगम, लता मंगेशकर और सुरेंदर कौर जैसी आवाजें दीं।

देशभर के सिनेमा मालिक बोले- सलमान की ‘राधे’ सिर्फ सिनेमाघरों में ही हो रिलीज, ये है वजह

बड़े फिल्मकारों के प्रस्ताव ठुकराए
जलालाबाद (अब अफगानिस्तान) में जन्मे कमर जलालाबादी का असली नाम ओमप्रकाश भंडारी था। गीतकार के तौर पर कभी उनके रुतबे और मसरूफियत का आलम यह था कि बड़े-बड़े फिल्मकारों के प्रस्तावों पर भी वह ‘मेरे पास वक्त नहीं है’ कहकर हाथ जोड़ लेते थे। इनमें राज कपूर ( Raj Kapoor ) भी शामिल थे, जो तब शोमैन के तौर पर नहीं उभरे थे। कमर जलालाबादी सीधी-सादी भाषा में गीतों को भावनाओं से सजाते थे। गीत चाहे उदासी का हो (इक दिल के टुकड़े हजार हुए), रूमानी हो (इक परदेसी मेरा दिल ले गया), चुलबुला हो (मेरा नाम चिन-चिन-चू) या फिर मौज-मस्ती का (डम-डम डीगा-डीगा), कमर जलालाबादी की शब्दावली उसमें जज्बात फूंक देती थी। उनका ‘खुश है जमाना आज पहली तारीख है’ तो 1954 से आज तक रेडियो वाले हर महीने की पहली तारीख को बजा रहे हैं।


कई बड़े संगीतकारों के साथ रचे गीत
जब फिल्मों में कई संगीतकार और गीतकार गुट बनाकर जमे हुए थे, कमर जलालाबादी गुटबाजी का हिस्सा नहीं बने। उन्होंने उस दौर के कई बड़े संगीतकारों हुस्नलाल-भगतराम, अनिल विस्वास, श्याम सुंदर, पंडित अमरनाथ, सुधीर फड़के, ओ.पी. नैयर, सज्जाद हुसैन, सरदार मलिक, कल्याणजी-आनंदजी, सोनिक ओमी आदि के साथ शब्दावली के जादू जगाए। छंद शास्त्र की उन्हें गहरी समझ थी। इसलिए पहले से तैयार धुन पर भी वे सहजता से गीत रच लेते थे। ‘वो पास रहें या दूर रहें, नजरों में समाए रहते हैं’ (बड़ी बहन), ‘आइए मेहरबां’ (हावड़ा ब्रिज), ‘तू है मेरा प्रेम देवता’ (कल्पना) और ‘दोनों ने किया था प्यार’ (महुआ) इसी तरह रचे गए।

इंदिरा नहर से पहले के राजस्थान की झांकी दिखाने वाली ‘Do Boond Pani’ के 50 साल


साजन की गलियां छोड़ चले
चार दशक लम्बे कॅरियर में कमर जलालाबादी ने सैकड़ों गीत रचे। इनमें ‘चुप-चुप खड़े हो जरूर कोई बात है’, ‘तुम रूठके मत जाना’, ‘तेरी राहों में खड़े हैं दिल थामके’, ‘मेरे टूटे हुए दिल से कोई तो आज ये पूछे’, ‘मैं तो इक ख्वाब हूं’, ‘दीवानों से ये मत पूछो’ और ‘साजन की गलियां छोड़ चले’ जैसे अनगिनत सदाबहार गीत शामिल हैं। जमाना इन्हें रहती दुनिया तक गुनगुनाता रहेगा।

Home / Entertainment / Bollywood / सीधी-सादी भाषा में गीतों को भावनाओं से सजाते थे Qamar Jalalabadi

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो