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Sahir Ludhianvi की बरसी पर विशेष: इक धुंध से आना है, एक धुंध में जाना है…

हिन्दी फिल्मों में साहिर ( Sahir Ludhianvi ) का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने दिल छूते गीतों से ऐसा पुख्ता पुल खड़ा किया, जो सिनेमा और साहित्य को जोड़ता है। साहिर से पहले तक ज्यादातर फिल्मी गीतकार तुकबंदी तक सीमित थे। साहिर ने बताया कि शब्दों की ताकत क्या होती है और गीतों में जज्बात कैसे सजाए जाते हैं।

मुंबईOct 24, 2020 / 11:45 pm

पवन राणा

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-दिनेश ठाकुर
कैफी आजमी ( Kaifi Azmi ) ने एक बार कहा था- ‘आईना चाहे जितना खूबसूरत हो, उसे देखकर कभी उसे बनाने वाले का ख्याल नहीं आता, लेकिन जब आप साहिर की शायरी पढ़ते हैं, तो रह-रहकर उनका चेहरा आंखों में घूम जाता है।’ रचनाओं से रचनाकार की वाबस्तगी (संबद्धता) अगर जादूगरी है, तो इस हकीकत को नकारने का कोई आधार नहीं है कि साहिर लुधियानवी ( Sahir Ludhianvi ) शायरी के जादूगर थे। फिल्मों में अपनी खास शैली के गीतों से उन्होंने जो जादू जगाए, वे जमाने को कल भी परम आनंद की अनुभूतियों से भिगोते थे, आज भी भिगोते हैं और कल भी भिगोएंगे। अय्याश जमींदार पिता (जिन्होंने 11 शादियां कीं) ने उनका नाम अब्दुल हई रखा था, लेकिन उन्होंने अपने लिए साहिर उपनाम चुना। यह अरबी जुबान का शब्द है, जिसका मतलब है जादूगर। ‘ये रात ये चांदनी फिर कहां’, ‘ठंडी हवाएं लहराके आएं’, ‘अभी न जाओ छोड़कर’, ‘जिंदगीभर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात’, ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा’ और ‘हम इंतजार करेंगे’ समेत उनके सैकड़ों गाने जादू से कम नहीं हैं।

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संगीतकार के मुकाबले गीतकार की भूमिका बड़ी

हिन्दी फिल्मों में साहिर का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने दिल छूते गीतों से ऐसा पुख्ता पुल खड़ा किया, जो सिनेमा और साहित्य को जोड़ता है। साहिर से पहले तक ज्यादातर फिल्मी गीतकार तुकबंदी तक सीमित थे। साहिर ने बताया कि शब्दों की ताकत क्या होती है और गीतों में जज्बात कैसे सजाए जाते हैं। उन्होंने न सिर्फ फिल्मी गीतों की गरिमा बढ़ाई, बल्कि यह भी स्थापित किया कि किसी गीत की लोकप्रियता के पीछे संगीतकार के मुकाबले गीतकार की बड़ी भूमिका होती है। इसीलिए किसी फिल्म के गीत लिखने से पहले उनकी शर्त होती थी कि उनका मेहनताना संगीतकार से ज्यादा होगा। अगर उनका लिखा ‘ये देश है वीर जवानों का’ आज भी धूम मचाता है, तो इसमें शब्दावली को धुन से ऊपर उठते महसूस किया जा सकता है।

ताउम्र रहे कुवांरे

साहिर ‘राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है’ लिखकर भी भावनाओं का तूफान उठाने का हुनर जानते थे। ‘चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों’ में प्रेम की जो कोमल अभिव्यक्ति है, वह साहिर से पहले किसी फिल्मी गीत में महसूस नहीं हुई थी। ‘पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है’ में मिसरा-दर-मिसरा कुदरत की जो तस्वीरें खींची गई हैं, वे दिल से रूह तक उजाला बिखेर देती हैं। साहिर ताउम्र कुवांरे रहे, लेकिन उनका ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’ हर पुत्री के पिता के दिल की आवाज है और ‘मेरे घर आई एक नन्ही परी’ में हर पुत्री की मां की भावनाएं झिलमिलाती हैं। कलम के इसी जादू की बदौलत वे गुरुदत्त, बी.आर.चोपड़ा, यश चोपड़ा समेत कई बड़े फिल्मकारों के पसंदीदा गीतकार बने रहे।

अपनी शर्तों पर किया काम

साहिर कभी ‘डिमांड एंड सप्लाई’ का हिस्सा नहीं बने। उन्होंने अपनी शर्तों पर गीतकार के रूप में कामयाब पारी खेली। ‘तेरी दुनिया में जीने से बेहतर है कि मर जाएं’, ‘बस्ती-बस्ती पर्बत-पर्बत गाता जाए बंजारा’, ‘जीवन के सफर में राही मिलते हैं बिछुड़ जाने को’, ‘दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना’, ‘जाने क्या तूने कही’, ‘मांग के साथ तुम्हारा’, ‘पल दो पल का साथ हमारा’, ‘उड़े जब-जब जुल्फें तेरी’, ‘अभी न जाओ छोड़कर’, ‘तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा’, ‘मेरे दिल में आज क्या है’, ‘लागा चुनरी में दाग’, ‘नील गगन के तले’, ‘तोरा मन दर्पण कहलाए’, ‘न मुंह छिपाके जिओ’, ‘तुझको पुकारे मेरा प्यार’ सरीखे बेशुमार गीत उनके सृजन के स्तर और गहराई की मिसाल हैं।

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आसान शब्दों में गहरी बात

रोमांस और फलसफा साहिर के गीतों की बुनियादी लय है। वे आसान शब्दों में गहरी बात कह जाते थे। मसलन ‘संसार की हर शै का इतना ही फसाना है/ इक धुंध से आना है, इक धुंध में जाना है’ या ‘कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है’ या फिर ‘मन रे तू काहे न धीर धरे।’ उनके गीतों में हौसला है (मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया) तो उम्मीद भी (वो सुबह कभी तो आएगी), जोश है (इक रास्ता है जिंदगी) तो कसक भी (ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है)। उनके गीतों में जज्बात कई रूप-रंगों में गुनगुनाते हैं।

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