यूं तो मुहर्रम का पूरा महीना ही बहुत पाक और गम भरा होता है, लेकिन इस महीने का 10वां दिन जिसे रोज-ए-आशुरा कहते हैं, सबसे अहम दिन होता है। 1400 साल पहले इसी महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन को शहीद किया गया था। उसके गम में ही हर वर्ष मुहर्रम की 10 तारीख को ताजिए निकाले जाते हैं। इस दौरान शिया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम जुलूस निकालकर मोहर्रम मानते हैं।
इस कड़ी में बुलंदशहर जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में भी मंगलवार को शिया समुदाय के मुस्लिमों ने सड़कों पर जुलूस निकाल कर मातम मनाया गया। इस दौरान जुलूस में शामिल लोगों का कहना था कि रसूल-ए-खुदा के नवासे इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों की शहादत की याद में मातमी जुलूस शहरभर में निकाला गया। इस दौरान ईमाम हुसैन का जुल्जना बरामद कर के ईमाम हुसैन व उनके पूरे परिवार को याद किया जाता है। इस दौरान हजरत हुसैन और उनके 71 साथियों की कर्बला की उस हक की जंग को याद किया जाता है, जब उनके तमाम साथियों ने अपने बच्चों सहित तीन दिन भूखा प्यासा रहकर जंग लड़ी थी। उस दौरान ईमाम हुसैन सहित उनके 71 साथियों को तत्कालीन जालिम बादशाह यजीद की फौज ने धोखे से बुलाकर शहीद कर दिया था।