वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने कहा है कि अगर भारत में बहुत से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) की पूंजी पर्याप्तता बहाल करने के लिए उचित नहीं उठाए गए तो उनकी साख पर दबाव बढ़ सकता है।
फिच ने शुक्रवार को कहा कि पिछले सप्ताह बहुत से बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बड़ा तिमाही घाटा दर्ज किया था। इससे लंबे समय से बरकरार बैलेंस शीट और पूंजी के जोखिमों, खराब आस्ति गुणवत्ता एवं कमजोर प्रावधान से संबंधित पुरानी समस्याओं का पता चलता है।
आरबीआई का दबाव
दिसंबर तिमाही में कई बैंकों के मुनाफे में अचानक गिरावट की मुख्य वजह कुछेक ऋणों के पुनवर्गीकरण के कारण ज्यादा प्रावधान करना था। बड़े पैमाने पर पुनवर्गीकरण की मुख्य वजह आरबीआई का दबाव था।
इस केंद्रीय बैंक ने सभी ऋणदाताओं- सार्वजनिक एवं निजी बैंकों से कहा था कि वे सभी संकटग्रस्त खाते चिह्नित करें और अगली दो तिमाहियों के प्रावधान में अहम बढ़ोतरी करें।
पूंजी की जरूरत
फिच ने कहा है कि जब खराब आस्तियों की पहचान के लिए केंद्रीय बैंक को हस्तक्षेप करना पड़ता है तो इससे बैंकों में फिर से पूंजी डाले जाने और सुधारों को लेकर सवाल पैदा होते हैं।
सरकारी बैंकों में प्रावधान कमजोर रहे हैं और उनकी साख बरकरार रखने के लिए बड़ी मात्रा में नई पूंजी की जरूरत है। फिच ने कहा कि अगर प्रावधान की प्रक्रिया को दीर्घकालिक बनाया जाता तो आमदनी एवं साख पर असर कम होता।
फिच का अनुमान
फिच का अनुमान है कि बैंकिंग तंत्र को 140 अरब डॉलर या 9.6 लाख करोड़ रुपए की पूंजी की जरूरत है। घाटे में थोड़े सुधार की जरूरत होगी, क्योंकि फिच लंबे समय से भारतीय बैंकिंग तंत्र का मूल्यांकन न केवल गैर-निष्पादित ऋणों बल्कि फंसी आस्तियों के आधार पर कर रही है। एजेंसी अपनी रेटिंग में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रावधान को भी आधार बनाती है।
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