आंकडों के आइने में देखा जाए तो पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों में पिछले साल के मुकाबले पराली जलाने की घटनाएं कम हुई है। सेटेलाईट आंकडों के अनुसार इस साल पंजाब में 25 सितम्बर से 2 नवम्बर तक 24 हजार 428 स्थानों पर पराली जलाई गई। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 29,182 स्थानों पर पराली जलाई गई थी। सेटेलाईट ने हरियाणा में इस साल 5273 स्थानों पर पराली जलाने की घटनाओं को दर्ज किया है। जबकि पिछले साल हरियाणा में 7014 स्थानों पर पराली जलाई गई थी।
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के डाॅ महावीर जगलान के अनुसार दिल्ली के प्रदूषण के लिए पंजाब और हरियाणा को जिम्मेदार बताना गलत है। डाॅ जगलान के अनुसार यदि उत्तर-पश्चिम हवाएं पंजाब में पराली जलाने से पैदा होने वाले प्रदूषक तत्वों को दिल्ली ले जाती है तो इस कारण हरियाणा में भी प्रदूषण बढना चाहिए।
साथ इन हवाओं के साथ दिल्ली के प्रदूषक तत्व दक्षिण-पूर्व और पूर्व की ओर बढना चाहिए। रेडियोएक्टिव शीतलन से शीतल हवा का सतह पर आने और हवा के उपर न उठने एवं सतह के समानान्तर चलने से दिल्ली में पैदा होने वाले प्रदूषक तत्व दिल्ली में ही बने रह जाते है। इससे गंभीर वायु प्रदूषण पैदा होता है। पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी हवाएं तापमान के उतार-चढाव को रूक-रूक कर रोकती है। साथ ही दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करने में मदद करती है। आने वाला पश्चिमी विक्षोभ दिल्ली वासियों को कुछ राहत दे सकता है।