पता चला कि इन इलाकों में मधुर महक वाले ढेर सारे जंगली फूल है जिनकी वजह से हाथी यहां खिंचे चले आते हैं। इसलिए हमने इलाके में मधुमक्खियों के पालन का निर्णय लिया। क्योंकि हाथी मधुमक्खियों की भनभनाहट से भयभीत हो जाते हैं और मधुमक्खियों की मौजूदगी वाले इलाके में नहीं घुसते। मधुमक्खियों के पालन का एक अन्य फायदा यह है कि आदिवासी और किसान उनके छत्ते शहद निकालकर बेच सकते हैं इससे उनकी आर्थिक स्थिति ठीक होगी। गन्ना प्रजनन संस्थान के निदेशक ब शीराम ने योजना को मंजूरी दे दी है।एक वैज्ञानिक ने बताया कि इसके बाद ईरोड़ में एक किसान का मधुमक्खियों के छत्ते का आर्डर दिया गया। उनका कहना था कि मधुमक्खियों को रात में दिखाई नहीं देता इसलिएवे रात को छत्ते से बाहर नहीं जातीं। ऐसे में यह बेहद आवश्यक था कि उन्हें रात में ही ईरोड़ से पश्चिमी घाट के जंगली इलाकों में भेजा जाता। मधुमक्खियां बेदह संवेदनशील होती हैं और वे स्थान परिवर्तन के बारे में जान जाती हैं। दो माह पहले जब मधुमक्खियों का छत्ता पलमलई पहुंचा तो मधुमक्खियों ने मोर्चा संभाला और जंगली हाथियों की इन इलाकों में घुसने की हि मत नहीं हुई। योजना की सफलता से उत्साहित वैज्ञानिकों ने अब इसे वेल्लमसारी में भी मधुमक्यिों का छत्ता लगाने की तैयारी की है। एक वन अधिकारी के अनुसार योजना की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल तक गर्मियों के मौसम में एक माह के दौरान पांच हाथी गांव में घुस आते थे लेकिन इस साल ऐसी कोई शिकायत फिलहाल नहीं मिली है।एक वैज्ञानिक के अनुसार आदिवासियों को इस बात का प्रशिक्षण दिया जाएगा कि वे छत्ते को नुकसान पहुंचाए बिना शहद कैसे निकाल सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन इलाकों से निकाली गई शहद की बाजार में अच्छी मांग होगी क्योंकि मधुमक्खियां आदिवासी गांवों के जंगली फूलों से पराग निकालेगी और शहद बनाएगी।