नैनार नागेंद्रन ने जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके की सदस्यता २०१७ में ग्रहण की थी। वे तिरुनेलवेली में रसूख वाले नेता हैं। पार्टी को भी उनसे और उनको पार्टी से उम्मीदें थी। बहरहाल, अब दोनों एक दूसरे से उकता चुके हैं।
डा. तमिलइसै सौंदरराजन के तेलंगाना की राज्यपाल बनने के बाद रिक्त प्रदेशाध्यक्ष के पद पर उनकी नजर थी। हालांकि पार्टी आलाकमान ने उस पद के लिए ‘लक्ष्मणÓ रेखा खींच दी। वे निराश हो गए। प्रदेशाध्यक्ष मुरुगन ने समझाइश की कोशिश लेकिन मीडिया में नैनार नागेंद्रन ने बागी तेवर दिखा दिए।
अवसर का लाभ उठाते हुए राजस्व मंत्री आर. बी. उदयकुमार ने नैनार नागेंद्रन को अपने समर्थकों सहित पार्टी में लौटने का न्यौता दे दिया। सूत्रों की मानें तो पूर्व मंत्री डीएमके और एआईएडीएमके मेें बेहतर संभावना तलाश रहे हैं। वे ट्वीट कर चुके हैं कि उनमें कोरोना के सामान्य लक्षण हैं तथा होम आइसोलेट हो रहे हैं। संभवत: इस एकांत में वे अपने भविष्य का मंथन करेंगे।
एआईएडीएमके जहां टूटे पत्ते समेटने में लगी है तो डीएमके कोरोनाग्रस्त हो रहे विधायकों को संभालने में लगी है। इस द्वंद्व में पार्टी के थाउजेंड लाइट्स विधायक केके सेल्वम ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा से नई दिल्ली में भेंट कर डीएमके नेताओं को चौंका दिया।
डीएमके विधायक इस भेंट को राजनीतिक परिपाटी की परिभाषा के तहत शिष्टाचार के नाते बात रहे हैं। लेकिन यह तय है कि वे भाजपा में खिचड़ी पकाना चाहते हैं। डीएमके के चेन्नई जिला सचिव जे. अन्बझगन के निधन के बाद पार्टी की महानगर में पकड़ कम हुई है। ऐसे में पदस्थ विधायक का भगवा पार्टी में शामिल होने की कवायद करने से राजनीतिक प्रेक्षकों में हैरानी हैं।
भाजपा के लिए सेल्वम का आना संजीवनी से कम नहीं होगा। सेल्वम खुद को पार्टी में किनारे पा रहे थे। उनकी पद लालसा की पूर्ति नहीं होने की वजह से सेल्वम ने पाला बदलने का निर्णय किया है। तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव है। कोविड-१९ के इस दौर में दोनों द्रविड़ दल अपनी धरती मजबूत करने लगे हैं। भाजप भी चाहती है कि राज्य में उसकी उपस्थिति प्रभावी हो। ऐसे में मौजूदा विधायक का उसके खेमे में होने का फायदा उसे मिलने की संभावना है।