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चेन्नई

एआईएडीएमके में गहरी होती खाई

एआईएडीएमके पार्टी नेतृत्व के लिए संकट बढ़ता जा रहा है। चुनाव आयोग में हालिया शपथ पत्र से पार्टी की मुश्किलें और बढ़ी हैं

चेन्नईAug 13, 2017 / 06:01 am

शंकर शर्मा

AIADMK leader Jayaram Jayalalitha

AIADMK leader Jayaram Jayalalitha

अशोकसिंह राजपुरोहित
एआईएडीएमके पार्टी नेतृत्व के लिए संकट बढ़ता जा रहा है। चुनाव आयोग में हालिया शपथ पत्र से पार्टी की मुश्किलें और बढ़ी हैं। राज्यसभा सांसद डा. वी. मैत्रेयन ने चुनाव आयोग में दायर किए शपथ पत्र में आरोप लगाया है कि वी.के. शशिकला ने पार्टी महासचिव पद कुटिल तरीके से हासिल किया है।

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री एवं एआईएडीएमके सुप्रीमो रही जयललिता के निधन के बाद से पार्टी लगातार नेतृत्व संकट को लेकर जूझ रही है। जयललिता में जो जादू था वह किसी अन्य नेता में नजर नहीं आ रहा। तमिलनाडु में पिछले कुछ महीनों से राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है। खास तौर पर एआईएडीएमके के बीच बिखराव की स्थिति बनती दिख रही है। पार्टी अपनी प्रासंगिकता खोने की स्थिति में पहुंच गई है। हालांकि पार्टी के समर्थक अब भी समूचे तमिलनाडु में हैं तथा सांसदों के लिहाज से देखा जाए तो भाजपा एवं कांग्रेस के बाद एआईएडीएमके देश में तीसरा सबसे बड़ा दल है।


पिछले साल दिसम्बर में जयललिता के निधन के बाद से पार्टी पर अस्तित्व को लेकर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। तीन धड़ों में बंटी पार्टी लगातार अपना जनाधार खोती जा रही है। जिस तरह मौजूदा राजनीतिक हालात बनते जा रहे हैं उसमें इसकी बहुत कम संभावना दिख रही है कि पार्टी में एकजुटता बनेगी। कहने को तमिलनाडु में भले ही एआईएडीएमके की सरकार है लेकिन प्रदेश में पिछले आठ माह से विकास के काम लगभग ठप हैं। पार्टी चलाना एक काम है और सरकार चलाना दूसरा काम। जब तक जयललिता जीवित थी तब तक पार्टी के पास एक मजबूत नेता एवं पार्टी की स्वीकार्यता थी। अब ऐसा नहीं है। पार्टी को उनका विकल्प नहीं मिल रहा।

५ दिसम्बर 2016 को जयललिता के निधन के बाद से पार्टी डावांडोल की स्थिति में है। इन आठ महीनों में सरकार भी अस्थिर ही है। जयललिता को लोगों ने असीम प्यार दिया। उनका पार्टी पर इतना मजबूत नियंत्रण था कि लोग उनके सामने कांपा करते थे। वो अपने मंत्रियों से मिलना भी पसंद नहीं करती थी। लोगों में मुफ्त चीज बांटने की नीति ने उन्हें बहुत लोकप्रिय बनाया। पार्टी के अन्दर एवं सरकार में रहते हुए मुश्किल एवं कठोर फैसलों के लिए मशहूर जयललिता को तमिलनाडु में ‘आयरन लेडी’ भी कहा जाता था।

एक तमिल अय्यंगार परिवार में जन्मी जयललिता की परवरिश बहुत ही पारम्परिक तरीके से हुई लेकिन पार्टी में वे बहुत तेजी से उभरी। एमजीआर की मौत के बाद पार्टी में जगह बनाने के लिए जयललिता को खूब संघर्ष करना पड़ा लेकिन जयललिता की मौत के बाद पार्टी को अब तक कोई काबिल नेता नहीं मिल सका जो उनकी भरपाई कर सके। हालात कुछ ऐसे बने कि इस साल फरवरी में तमिलनाडु विधानसभा में 29 साल बाद बहुमत परीक्षण से गुजरना पड़ा।


उधर विपक्षी पार्टी डीएमके ने यह कहकर पार्टी की बैचेनी और बढ़ा दी है कि वह कभी भी अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है। हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि आगामी चुनाव से पहले एआईएडीएमके के विधायक सुरक्षित ठिकाने की तलाश में है। इसी क्रम में कई पार्टी छोडऩे की फिराक में हैं। पार्टी के नेताओं में आपस में ही आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति सातवें आसमान पर है। पार्टी में बिखराव चरम पर है।

पिछले दिनों एआईएडीएमके (अम्मा गुट) के उप-महासचिव टीटीवी दिनकरण ने एक प्रेस वार्ता में यहां तक कह दिया कि मंत्री सरकार में रहकर ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाने की कोशिश में लगे हैं। उनके ही समर्थक नेता ने यह भी इशारा कर दिया है कि बहुमत साबित करने की नौबत आई तो मुख्यमंत्री ई. के. पलनीस्वामी को हमारे आगे घुटने टेकने होंगे। यही ढर्रा बदस्तूर रहा तो देर-सवेर पार्टी शायद फिर कभी संयुक्त नहीं होगी।

एक गुट की अगुवाई ओ. पन्नीरसेल्वम (ओपीएस), दूसरे गुट की कमान एडपाड़ी पलनीस्वामी (ईपीएस) तथा तीसरे का नेतृत्व टीटीवी दिनकरण कर रहे हैं। इनके एकीकरण के अब तक के प्रयास विफल साबित हुए हैं। हर एक की महत्वाकांक्षा ही पार्टी की एकजुटता में सबसे बड़ी बाधा बन रही है।

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