कभी सड़कों पर भीख मांगी, अब 23 साल से बेसहारों को खाना खिला रहे
कभी सड़कों पर भीख मांगी, अब 23 साल से बेसहारों को खाना खिला रहे- कोयंबत्तूर के बी. मुरुगन की कहानी
कोयम्बत्तूर. कभी खुद भीख मांगने के लिए मजबूर 47 साल के बी. मुरुगन ने अब कोयम्बत्तूर को भिखारीमुक्त बनाने का बीड़ा उठाया है। वे रोजाना सुबह 3 बजे उठते हैं। वह अपने घर की रसोई में पत्नी, तीन सहायक और एक रसोइया के साथ मिलकर खाना बनाते हैं और बड़े करीने से पैक करते हैं। वे ऐसा इसलिए नहीं करते हैं क्योंकि वे मेस या हॉस्टल चलाते हैं, बल्कि कोयंबत्तूर की सड़कों पर बेसहारा लोगों को खाना परोसने के लिए करते हैं।
मुरुगन ने 1998 में एनजीओ निज़ल मैयम की स्थापना की। अपने स्वयंसेवकों की मदद से 23 साल से बेसहारा लोगों और परित्यक्त बच्चों को भोजन परोस रहे हैं। हर रविवार की सुबह वह 18 अनाथालयों में लगभग 200 बेसहारा लोगों और 1,000 परित्यक्त बच्चों को भोजन परोसते हैं। वे बताते हैं कि बारहवीं कक्षा की परीक्षा में असफल होने पर उन्होंने तीन बार आत्महत्या का प्रयास किया। बिना किसी उम्मीद के मैं 1992 में कोयंबत्तूर के सिरुमुगई आया था। मैं सड़क के किनारे एक भिखारी के साथ रहा। जब मैंने अपने आस-पास एक जैसी अवस्था में इतने सारे भिखारियों को देखा, तो मैंने उनकी मदद करने का फैसला किया।
शुरुआत 25 बेसहारा लोगों को खाने से
एक वरिष्ठ नागरिक ने मुझे एक छोटे से होटल में नौकरी दिलाने में मदद की। बाद में मैंने कुछ वर्षों तक एक लॉरी में क्लीनर के रूप में काम किया। तब तक मैं एक कंपनी में ऑटो ड्राइवर बन चुका था। 1998 में मैंने रविवार को मेट्टुपालयम रोड पर 25 बेसहारा लोगों को खाना बनाना और बांटना शुरू किया। जब मेरे दोस्तों और कंपनी के मालिक को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने मुझे पैसे, सब्जियां, चावल और अन्य किराने का सामान देकर मेरा समर्थन करना शुरू कर दिया।
प्रतिदिन 200 गरीब लोगों को भोजन वितरित
मैंने अपने वेतन के एक हिस्से को इसके लिए भी देना शुरू कर दिया। निज़ल मैयम शुरू करने के बाद कुछ स्वयंसेवक हमारे काम से प्रेरित हुए और हमसे जुड़ गए। उन्होंने बताया कि 2011 में स्वयंसेवकों के शामिल होने के बाद वे प्रतिदिन 200 गरीब लोगों को भोजन वितरित करने में सक्षम हुए हैं।
बेघरों की पीड़ा का एहसास
मुरुगन कहते हैं, मेरा एक और सपना कोयंबत्तूर को भिखारी मुक्त शहर बनाना है। हमें परित्यक्त बच्चों और वयस्कों की देखभाल के लिए एक अनाथालय की आवश्यकता है। मुरुगन का कहना है कि वह हर रविवार को 15 तरह की सब्जियां, पांच लीटर शुद्ध खाना पकाने का तेल, पांच लीटर घी, छोले, हरी मटर और अन्य दाल मिलाकर ताजा सांबर तैयार करते हैं। मुरुगन का कहना है कि सड़कों पर बिताए उनके समय ने उन्हें बेघरों की पीड़ा का एहसास कराया।
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