साधु तो पंच महाव्रतधारी होते हैं। तीन करण तीन योग से उनके संकल्पों का त्याग होता है। साधु को जीवनभर के लिए रात्रि भोजन का भी त्याग होता है। श्रावक को यह सोचना चाहिए कि साधु तो पांच महाव्रतों का पालन करने वाले हैं, किन्तु हम तो महाव्रतों का पालन नहीं कर सकते, इसलिए श्रावक को अणुव्रत द्वारा छोटे-छोटे संकल्पों का त्याग कर आध्यात्मिकता की दिशा में आगे बढऩे का प्रयास करना चाहिए।
श्रावक के लिए बारहव्रत बताए गए हैं। साधु को हिंसा को पूर्णतया त्याग होता है, किन्तु गृहस्थ श्रावक के जीवन में तो अनेक कार्य करने होते हैं।
खेती, भोजन, पानी से संबंधित अनेक कार्य होते हैं। इसलिए श्रावक को हिंसा का सीमाकरण करने का प्रयास करना चाहिए। श्रावक को संकल्पजा हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए।
इसी प्रकार श्रावक पूर्ण रूप से झूठ का त्याग न कर सके तो उसका एक सीमाकरण तथा पूर्ण रूप से चोरी का त्याग नहीं कर सकता, किन्तु एक सीमाकरण करने का प्रयास करे। ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन नहीं कर सकता तो उसमें भी सीमाकरण एवं स्वदार का संतोष करने का प्रयास करना चाहिए।
श्रावक परिग्रह का पूर्ण त्यागी नहीं बन सकता, किन्तु परिग्रह का सीमाकरण अवश्यक कर सकता है। इसलिए श्रावक को परिग्रह का सीमाकरण करने का प्रयास करना चाहिए। श्रावक अनावश्यक यात्राओं से भी बचने का प्रयास करे। श्रावक यात्राओं का अल्पीकरण कर ले। श्रावक के बारह व्रतों में नौवां व्रत है सामायिक। श्रावक एक मुहूर्त के लिए कुछ साधु के समान हो जाता है। श्रावक को शनिवार की सायं सात से आठ बजे के बीच सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए।
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद की एकदिवसीय बारहव्रत कार्यशाला के बारे में कहा युवकों का धार्मिक दिशा में गति करना अच्छा है। जब युवा पीढ़ी धार्मिकता की दिशा में आगे बढ़ती है तो मानो आगे का भविष्य और अच्छा हो सकता है। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद अच्छा कार्य कर रही है।