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छतरपुर

गौशाला में खूंटी पर टंगे है अस्थि कलश, मोक्ष के लिए लॉक डाउन खुलने का इंतजार

हरिओम गौशाला में लॉक डाउन के दौरान एकत्र हो गए 60 अस्थि कलशलंबे इंतजार के कारण 35 परिवारों ने केन नदी में किया विसर्जन, 25 अभी भी गौ-शाला में

छतरपुरMay 28, 2020 / 09:29 am

Dharmendra Singh

60 bone urns collected during lock down

60 bone urns collected during lock down

छतरपुर। कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू लॉक डाउन एक-एक करके चौथे चरण में पहुंच गया है। सार्वजनिक परविहन बंद होने और प्रयागराज जाने पर रोक के कारण मृतकों की अस्थियां भी कलश से मोक्ष का इंतजार कर रही हैं। लॉकडाउन के कारण लोग अपने मृत परिजन की अस्थियां गंगा व अन्य पवित्र नदियों में प्रवाहित नहीं कर पा रहे हैं। परिजनों ने गौ-शाला में अस्थि कलश रखे हुए हैं, ताकि आवागमन के साधन चालू हो तो वे इनका प्रयागराज या अपनी मान्यानुसार पवित्र जगहों पर जाकर विसर्जित कर सकें। शहर के बगराजन माता मंदिर के पास स्थित हरिओम गौशाला में भी लॉकडाउन के चलते 60 अस्थि कलश एकत्र हो गए थे। सभी अस्थि कलशों में परिजनों ने नाम की चिट लगा रखी थी, ताकि कलश बदल न जाए। हरिओम गौशाला के संचालक पारस दुबे ने बताया कि इस तरह से पहले भी लोग अपने परिजनों के अस्थि कलश रख जाते थे, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि इतने लंबे समय के लिए एक साथ इतनी बड़ी संख्या में अस्थि कलशों को यहां पर रखा गया है। उन्होंने बताया कि 60 अस्थि कलश गौशाला में एकत्र हो गए थे, लेकिन लॉकडाउन लगातार बढ़ते जाने से 35 लोगों ने जिले के बॉर्डर से प्रवाहित हो रही केन नदी में अस्थि विसर्जन कर दिया, लेकिन 25 मृतकों की अस्थियां अभी भी मोक्ष के इंतजार में गौशाला में हैं।
मुक्तिधाम व मदिरों में पीपल के वृक्ष पर भी अस्थि कलश संचित
शहर की गौशालाओं के अलावा मुक्तिधामों पर भी अंतिम क्रिया के बाद मृतकों की अस्थियों को कमरे में संभाल कर रख दिया गया है। आधा दर्जन अस्थि कलश ऐसे हैं, जिन्हें रखे हुए 20 से 25 दिन बीत चुके हैं। सिंघाड़ी नदी मुक्तिधाम के पास की टाल के संचालक जीतेन्द्र निगम ने बताया कि लॉक डाउन खुलने के इंतजार में लोग अपने परिजन की अस्थियों को विसर्जन के लिए नहीं ले जा पा रहे हैं। इसी तरह शहर के बाहर मंदिरों में पीपल के वृक्ष पर भी कुछ अस्थि कलश संचय किए गए हैं। जिन परिवारों से जुड़े मृतकों की ये अस्थि कलश हैं, उनके मन को ये बात कचौट रही है कि, कब लॉकडाउन खुलेगा और उन्हें प्रयागराज जाकर अस्थि विसर्जन का अवसर मिलेगा, जिससे उनके मृत परिजन की आत्मा को मोक्ष मिले। कुछ लोगों ने निजी वाहन से प्रयागराज जाने की कोशिश की, लेकिन प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने के कारण प्रयागराज जाना संभव नहीं हो सका।
पुरातन समय में तीर्थयात्रा के दौरान विसर्जन की थी परंपरा
हिंदू धर्म में निधन के बाद अंतिम संस्कार किया जाता है। अंतिम संस्कार के बाद अस्थि संचय व अस्थियों को 3 से 10 दिन के अंदर देश की पवित्र नदियों में विसर्जन की परंपरा है। कोरोना वायरस ने इस परंपरा पर भी अस्थाई रोक लगा दी। 70 वर्षीय पंडित एमएल पाठक ने बताया कि पुरातन समय में पवित्र नदियों तक पहुंचने के पर्याप्त संसाधन नहीं होते थे, ऐसे में लोग तीर्थ जाने पर ही उनका विसर्जन करते थे। मृतक के परिजन अस्थियों का संचय कर उन्हें किसी पेड़ या बागीचों में रखते थे। इसके बाद जब लोग पैदल तीर्थ दर्शन के लिए जाते थे, उस वक्त इनका विसर्जन किया जाता था। समय के साथ परिवहन के संसाधन शुरू हुए तो लोगों ने इन्हें 10 दिन के अंदर विसर्जन की परंपरा बना ली है। लेकिन लॉकडाउन के कारण परंपरा का पालन नहीं हो पा रहा है।

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