अपने किसी चहेते को टेंडर दिलाने के लिए ज्यादातर सरकारी अफसर इसका उपयोग करते हैं। इसमें संबंधित ठेकेदार की विशेष योग्यता को ही टेंडर शर्तों में मुख्यतौर पर रखा जाता है। ऐसे में टेंडर में केवल एक ही व्यक्ति भाग ले पाता है। टेंडर की प्रक्रिया को शून्य कर फिर से टेंडर बुलाए जाते हैं। दो बार टेंडर प्रक्रिया में एक-एक व्यक्ति के ही भाग लेने के बाद तीसरी बार प्रक्रिया में नियमानुसार उसी व्यक्ति को टेंडर मिल जाता है।
यदि किसी टेंडर में चहेते व्यक्ति के अलावा कोई अन्य भी आता है, तो उसे तकनीकी योग्यता का आधार बनाकर प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाता है। चूंकि तकनीकी योग्यता की जांच का पूरा जिम्मा अफसरों के पास रहता है, इसलिए वे इसका मनमाना उपयोग करते हैं।
सभी ठेकेदार अफसरों के नियमित संपर्क में रहते हैं। बड़े ठेकेदार भी प्री-बीड के दौरान प्रोजेक्ट की स्थिति जानने अफसरों के पास आते हैं। उस समय अन्य ठेकेदारों को अफसर काम कठिन और दिक्कतों वाला बताकर कठिन योग्यताओं को रख देते हैं। ऐसे में कई बार बड़े ठेकेदार भाग ही नहीं लेते।
यदि कोई चहेता ठेकेदार बड़ा टेंडर लेने के लिए योग्य नहीं है तो उसके लिए पेटी कांट्रेक्ट या सबलेट का रास्ता निकाला जाता है। काम का बड़ा हिस्सा या कभी-कभी पूरा काम ही अफसर मुख्य ठेकेदार को कहकर अपने चहेते को दिलवा देते हैं। उसको मिलने वाले मुनाफे का प्रतिशत भी इसमें तय हो जाता है।
कसी काम को तेजी से पूरा करने के लिए शार्ट टेंडर प्रक्रिया को अपनाया जाता है। इसमें काम की स्थिति को दर्शाते हुए टेंडर की प्रक्रिया को बेहद कम समय के लिए रखा जाता है, जिसकी जानकारी चहेते ठेकेदारों को देकर उन्हें ही प्रक्रिया में भाग लेने के लिए कहा जाता है।
टेंडर ऑपरेटर खोलता है। उसके जरिए टेंडर की समय सीमा समाप्त होने के ऐन पहले नजर रखी जाती है। जिन लोगों ने टेंडर फार्म जमा किए, उनकी दर ऑपरेटर मुख्यालय में बैठकर देख लेता है और ऐनवक्त पर उससे कम दर डलवाकर चहेतों को टेंडर दे दिया जाता है।
अफसर चहेते ठेकेदारों से टेंडर की दरों से भी कम दरों पर टेंडर डलवा काम दिलवा देते हैं। इस नुकसान की भरपाई उसी टेंडर के नाम पर ज्यादा काम करवा अतिरिक्त काम कागजों में तो काफी बताए जाते हैं, मौके पर बेहद कम कर ठेकेदार का मुनाफा तय कर दिया जाता है।