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छतरपुर

महाराजा छत्रसाल शक्ति, भक्ति और राजनीति के सामर्थ्यपूर्ण संवाहक: डॉ डी पी शुक्ल

विश्वविद्यालय में महाराजा छत्रसाल पर केंद्रित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन

छतरपुरFeb 04, 2024 / 10:23 am

Dharmendra Singh

कार्यक्रम को संबोधित करते वक्ता

कार्यक्रम को संबोधित करते वक्ता


छतरपुर. महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी छतरपुर में महाराजा छत्रसाल शोध पीठ और अकादमिक प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वावधान में बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल: शक्ति, भक्ति और राजनीति के कुशल संवाहक विषय पर अंतर्रराष्ट्रीय संगोष्ठी का विचार मंथनोपरांत समापन हुआ।
मीडिया समिति सदस्य नंदकिशोर पटेल व डॉ डीके प्रजापति के अनुसार दूसरे दिन के चतुर्थ तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ दया दीक्षित ने की। मुख्य वक्ता डॉ महेंद्र प्रताप अवस्थी भीष्म, डॉ रिंकी पाठक (साहित्य समीक्षक), डॉ नीरज निरंजन तथा विश्वविद्यालय के सेवानिवृत प्राध्यापक डॉ सीएम शुल्क, डॉ एनके जैन रहे।
कार्यक्रम में मौजूद लोग
डॉ सीएम शुल्क ने महाराजा छत्रसाल के प्रारंभिक जीवन से लेकर उनके राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों की महत्ता को बताया। वही डॉ महेंद्र प्रताप अवस्थी ‘भीष्म’ ने महाराजा छत्रसाल के भक्ति, शक्ति और कौशल को रेखांकित करते हुए महाराजा छत्रसाल एक सफल प्रेमी के रूप में भी जाने गए पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा महाराज छत्रसाल में दुश्मन को जीतने का जज्बा था। महाराजा छत्रसाल शिवाजी की प्रेरणा से ही आगे बढ़े। छत्रसाल के गौरव और वैभव को शोध के साथ देश विदेश के स्तर पर लाने की आवश्यकता है। महाराजा छत्रसाल जैसे उदात्त चरित्र का अनुकरण करें। डॉ एनके जैन ने महाराजा छत्रसाल की तुलना शिवाजी से करते हुए उनके रण कौशल के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। डॉ रिंकी पाठक ने महाराजा छत्रसाल के चंपतराय के मध्य संघर्षों पर अपनी बात रखी। डॉ दया दीक्षित ने कहा कवि कभी कुटिल नहीं हो सकता और कुटिल कभी कवि नहीं बन सकता। इस सत्र के अध्यक्षता डॉ डीपी शुक्ला ने की, उन्होंने कहा कि छत्रसाल को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास छत्रसाल शोध पीठ द्वारा किया जाएगा।
पांचवे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ एनके जैन ने की तथा मुख्य वक्त के रूप में त्रिभुवन यूनिवर्सिटी काठमाडू, नेपाल से डॉ संजीता वर्मा उपस्थित रहीं। डॉ वर्मा ने महामती प्राणनाथ एवं महाराजा छत्रसाल विषय पर विस्तृत व्याख्यान दिया। साथ विभिन्न क्षेत्रों से आए विभिन्न विषयों के प्राध्यापक, विद्वान के अलावा 25 शोधार्थियों ने भी अपने शोध पत्रों का वाचन किया। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ एनके जैन ने कहा शोध जिंदा और मौलिक होना जरूरी है।
समापन सत्र के अध्यक्षता विश्वविद्यालय प्रति कुलपति डॉ डीपी शुक्ला ने की। डॉ जे पी शाक्य, डॉ ममता वाजपेयी, डॉ आर के पांडे, डॉ बीपी सिंह गौर तथा डॉ मुक्ता मिश्रा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। तकनीकी सत्रों का संचालन डॉ नंदकिशोर पटेल तथा समापन सत्र का संचालन डॉ आर डी अहिरवार ने किया। डॉ देवेंद्र के. प्रजापति ने सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में मौजूद लोग

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