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छतरपुर

समावेशी संस्कृति समेटे हुए हैं खजुराहो के प्राचीन जैन मंदिर

जैन मंदिर में वैदिक-पौराणिक परंपरा के देवी-देवताओं को भी स्थान दिया गया है। जो उस समय की समावेशी संस्कृति की पहचान हैं। अशोक वाटिका में सीता बैठी है, उसका भी चित्रण जैन मंदिर में है। राम-सीता और हनुमान की मूर्ति है।

छतरपुरMay 31, 2024 / 10:44 am

Dharmendra Singh

jain temple

जैन मंदिर खजुराहो

छतरपुर. खजुराहो के दसवी सदी के जैन मंदिर समावेशी संस्कृति को समेटे हुए हैं। जैन मंदिर में वैदिक-पौराणिक परंपरा के देवी-देवताओं को भी स्थान दिया गया है। जो उस समय की समावेशी संस्कृति की पहचान हैं। अशोक वाटिका में सीता बैठी है, उसका भी चित्रण जैन मंदिर में है। राम-सीता और हनुमान की मूर्ति है। सीताहरण का दृश्य भी है। मंदिरों में पर्यावरण प्रेम को भी दर्शाया गया है, मंदिरों में पशु, पक्षी का चित्रण उस समय की इसी संस्कृति का उदाहरण हैं। कुल मिलाकर पर्यावरण, आम जीवन, देव देवताओं का संसार भी है, जो धार्मिक व आध्यत्मिक महत्व को दर्शाता है। मंदिर में पूरा चर-अचर जगत की समावेशी रुप में अभिव्यक्ति है।

शांतिनाथ मंदिर


जैन धर्म से संबंधित शांतिनाथ मंदिर का निर्माण काल 1028 ई. सन है। मंदिर का मुख पूर्वी ओर है। इसमें भगवान शांतिनाथ की 14 फीट ऊँची प्रतिमा विद्यमान हैं। मंदिर के तीन ओर खुला प्रांगण है, जहां लघु मंदिर में अन्य जैन प्रतिमाएं भी स्थापित की गई है। मंदिर द्वार के दोनों ओर दो शाखाओं में द्वार की चौखट पर मिथुन विराजमान है। स्थानीय मतों के अनुसार मंदिर का वास्तविक द्वार नष्ट हो जाने के पश्चात निर्मित किया था, अत: यहां वर्तमान काल में मूर्तियाँ सही क्रम में तथा अपने वास्तविक स्वरुप में स्थापित नहीं हो पाई है। मंदिर का शिखर भाग भी प्राचीन नहीं दिखाई देता है, इसलिए कुछ इतिहासकार इसे आधुनिक जैन मंदिर मानते हैं। मंदिर की पुरातन मूर्तियों और प्रस्तरों को सजाकर वर्तमान रुप दिया गया है।

पाश्र्वनाथ का मंदिर


पूर्वी समूह के अंतर्गत पाश्र्वनाथ मंदिर, खजुराहो के सुंदरतम मंदिरों में से एक है। 68 फीट लंबा 65 फीट चौड़ा यह मंदिर एक विशाल जगती पर स्थापित किया गया है। मूलत: इस मंदिर में आदिनाथ की प्रतिमा थी। वर्तमान में स्थित पाŸवनाथ प्रतिमा उन्नीसवीं शताब्दी के छटे दशक की है। इस प्रकार यह मंदिर आदिनाथ को समर्पित है। वास्तु व अभिलेखिक साक्ष्यों के आधार में पर इस मंदिर का निर्माण 950 ई. से 970 ई. सन के बीच यशोवर्मन के पुत्र और उत्तराधिकारी धंग के शासनकाल में हुआ माना गया है।

आदिनाथ का मंदिर खजुराहो


पुरातत्व रुचि का महत्वपूर्ण आदिनाथ मंदिर 1000 ई. सन् के आस- पास का है। मंदिर निरंधार- प्रासाद तथा सप्तरथ प्रकृति का है। यह मंदिर ऊंची जगती पर निर्मित है एवं पाŸवनाथ से मिला हुआ है। सामान्य योजना, निर्माणशैली तथा शिल्प शैली में यह छोटा- सा मंदिर वामन मंदिर के समान ही है। आदिनाथ जैन मंदिर में चंदेल राजा मदनवर्मन के शासन के दौरान वर्ष 1027 के शिलालेख के साथ एक मूर्ति है ।

मंदिर के खंभो में घंटी की आकृति से पड़ा घंटाई मंदिर नाम


खजुराहो के यूनेस्को धरोहर मंदिरों में जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ को समर्पित घंटाई मंदिर है। मंदिर के बचे अवशेषों में खंभे पर घंटी (बेल) की आकृति अंकित होने के कारण मंदिर का नाम घंटाई मंदिर पड़ गया। घंटाई मंदिर का निर्माण चंदेल राजा धंगंदेव के शासनकाल के दौरान 10वीं सदी में किया गया था। यह मंदिर मूल रूप से पाश्र्वनाथ मंदिर के समान डिजाइन का था, लेकिन आयामों में लगभग दो गुना बड़ा था। जो कुछ भी बच गया है वह एक प्रवेश द्वार-पोर्च और एक महामंडप है। नर्तकियों और संगीतकारों के समूहों को मंदिर पर अंकित किया गया है। मंडप के द्वार के दरवाजे में आदिनाथ के यक्षिणी परिचारक चक्रेश्वरी हैं। उन्हें आठ भुजाओंऔर गेरुआ वस्त्र धारण करने के रूप में दर्शाया गया है। चौखट पर स्थित आर्कीटेक्ट में महावीर की गर्भवती माता द्वारा स्वप्न में देखे गए 16 शुभ प्रतीकों की नक्काशी की गई है।

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