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छतरपुर

प्राणवायु के साथ आत्मबल भी दे रहे पेड़, संबंधों की मजबूती के लिए पेड़ में ठोक रहे सांकल

मान्यता : चमत्कारी पेड़ से आस्था के चलते हैजा व कोराना काल में गांव रहा सुरक्षित

छतरपुरFeb 10, 2024 / 12:31 pm

Dharmendra Singh

अकोला के पेड़ में ठोकी गई सांकल

अकोला के पेड़ में ठोकी गई सांकल

छतरपुर. पेड़ हमें न केवल प्राणवायु प्रदान करते हैं, बल्कि आत्मबल भी देते हैं। छतरपुर जिले के नौगांव जनपद क्षेत्र के छोटे से गांव बरट में एक पेड़ पर लोगों का ऐसा संबंध है कि वे शारीरिक कष्ट हो या कोई मनोकामना पूरी करनी हो तो लोग पेड़ की पूजा करते और मनोकामना पूरी होने पर पेड़ में लोहे की सांकल ठोकते हैं। जो उनकी पेड़ से संबंधों की मजबूती का प्रतीक बन गए हैं। पेड़ से लोगो की आस्था कई पीढियों से जुड़ी हुई है। श्रद्धालुओं द्वारा मनोकामना पूरी होने पर कई टन लोहे की सांकल इस पेड़ में ठोकी जा चुकी हैं।
देवी-देवता की तरह पेड़ को मानते है चमत्कारी
बरट गांव में तालाब किनारे कई मंदिर व देवी देवताओं के स्थान बने हुए हं,ै जो ग्रामीण इलाके में आस्था के साथ ही चमत्कारी मंदिर माने जाते हैं। गांव के लोग बताते हैं, गांव में तालाब किनारे कई चमत्कारी देवी देवताओं के स्थान हैं, जिसमें 12 वीं सदी का चन्देल शासन में बनाया गया शिव मंदिर भी है, जो विशाल सांपो के साए में रहता है। इसके साथ ही हरदौल, गोड़ बब्बा के स्थान के साथ ही बजरंग बली का प्राचीन मंदिर भी है। इसी मंदिर से ही कुछ दूरी पर देवी देवताओं के चबूतरे के पास यह वर्षो पुराना अंकोल (अकोला) का पेड़ लगा हुआ हैं, जिसे लोग देवताओं की तरह ही चमत्कारी मानते हैं।
अकोला के पेड़ में ठोकी गई सांकल
दूर-दूर से आते हैं लोग
यह अद्भुत अकोला का चमत्कारी पेड़ क्षेत्र के लोगो के साथ ही दूर दराज के लोगों के लिए भी आस्था का प्रतीक बना हुआ है। इस पेड़ में अभी भी हजारो सांकल लटकी हुई है। जबकि लाखों सांकल पेड़ के तनों में समा चुकी हैं। गांव के उमरचन्द राजपूत, कमलापत विश्वकर्मा, कली राजपूत ने बताया कि इस चमत्कारी पेड़ पर जो भी लोग अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मनोकामनाए पूर्ण होने के बाद वह सांकल, नारियल व सिन्नी दाने का प्रसाद चढ़ाते और सांकल को पेड़ की शाखाओं में ठोकते हैं।
महामारी से बचे तो बढ गई पेड़ से आस्था
गांव के बुजुर्ग हीरालाल के अनुसार, ये प्रथा वर्षों से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि, उन्होंने भी गांव के बुजुर्गों से सुना था कि, भारत में जब वर्ष 1940 में हैजा फैला था, तभी लोगों ने उस बीमारी से बचने के लिए पेड़ की पूजा करते हुए प्रसाद के तौर पर सांकल चढ़ाना शुरू किया था। उस समय जब पूरा देश हैजा बीमारी से जूझ रहा था, तब पूरा गांव उस जानलेवा बीमारी से सुरक्षित रहा था। ये एक प्रचलित किस्सा है, लेकिन संभव है कि, उससे पहले भी लोग ऐसी ही प्रथा मानते रहे होंगे। लेकिन, स्पष्ट तौर पर तो गांव इतने वर्षों से पेड़ को खास महत्व देता आ रहा है।

हर साल प्रत्येक परिवार निभाता है संबधों की अनूठी परंपरा
हर साल दुर्गा नवमीं और रामनवमीं के दिन गांव के हर परिवार का मुखिया अपने परिवार की रक्षा और बीमारी से बचाए रखने के लिए यहां प्रसाद के तौर पर सांकल चढ़ाता है। ग्रामीणों का तो यहां तक दावा है कि, 2020 से दो वर्ष तक जहां पूरा विश्व कोरोना संक्रमण से जूझता रहा। इस बीमारी के बारे में हम सिर्फ अखबार और न्यूज के माध्यम से ही सुनते हैं, लेकिन गांव का कोई भी शख्स को अबतक संक्रमण की चपेट में नहीं आया है। ग्रामीणों का विश्वास है कि, उसे चमत्कारी पेड़ से आस्था के चलते ही ये संभव हुआ है।
अकोला के पेड़ में ठोकी गई सांकल

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