मोटे अनाज के उत्पादन में बुंदेलखंड की मिट्टी काफी मुफीद है। हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, जालौन, झांसी, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, छतरपुर में ज्वार का उत्पादन होता है। खरीफ की फसलों में इसको किसान उत्पादित करता है। भरूआ समुरेपुर कस्बे की पुरानी गल्ला मंडी ब्रिटिश हुकूमत के समय से ज्वार के खरीद-फरोख्त के लिए मशहूर है। अंग्रेजी शासन काल में यहां से ज्वार रेल के माध्यम से देश के अन्य प्रांतों में भेजी जाती थी। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान बिछाई गई कानपुर बांदा रेलवे लाइन में कस्बे के रेलवे स्टेशन में माल गोदाम बनाकर यहां से मालगाड़ी के माध्यम से ज्वार के साथ सनाई बाहर भेजी जाती थी। सनाई से रस्सी बनाने के साथ पशुओं का दाना तैयार किया जाता था। अब इसका उत्पादन शून्य हो गया है। लेकिन यहां की सफेद ज्वार की मांग आज भी बरकरार है।
![सुमेरपुर मंड़ी में बिकने आई सफेद ज्वार](https://cms.patrika.com/wp-content/uploads/2024/01/16/chp160124-73_8682919-m.jpg)
बुंदेलखंड में सफेद ज्वार का सर्वाधिक उत्पादन होता है। बुंदेलखंड में लोग सर्दी के सीजन में इसका खाने में उपयोग करते हैं। इस वर्ष ज्वार के दामों में जबरदस्त उछाल है। गल्ला आढ़ती श्यामबाबू पांडेय, कामता गुप्ता, सुनीत गुप्ता, बालकिशन गुप्ता, विपिन गुप्ता, रमाकांत गुप्ता ने बताया कि इस वर्ष सफेद ज्वार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र भेजी जा रही है। सफेद ज्वार का न्यूनतम मूल्य 3000 से 4000 रुपए प्रति क्विंटल है। दिसंबर माह से शुरू होने वाला ज्वार का कारोबार फरवरी अंत तक चलता है
किसानों ने बताया सफेदा ज्वार का रंग और बड़ा दाना होने पर बाहरी मंडियों में अच्छी कीमत मिलती है। रंग कमजोर होने तथा दाना पीला होने के कारण दाम कम मिलते ह्रैं। लेकिन फिर भी किसानों का अच्छा लाभ होता है। यही कारण है कि सफेद ज्वार हमेशा महंगे दामों में बिकती है। नवीन गल्ला मंडी में प्रतिदिन एक से दो हजार क्विंटल ज्वार मंडी में आ रही है।
सफेद ज्वार की आवक से दिसंबर माह में मंड़ी को 12 लाख 62 हजार का राजस्व प्राप्त हुआ है। जनवरी और फरवरी में भी सफेद ज्वार की आवक बनी रहती है।
ब्रजेश कुमार निगम, मंडी सचिव, सुमेरपुर
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