जिले में इस समय रबी सीजन में तीन लाख हेक्टेयर में गेहूं, 50 हजार हेक्टेयर में चना, 25 हजार हेक्टेयर में सरसों की फसल पककर खेतों से खलिहान, गोदाम और मंडियों में पहुंचने लगी है। खेतों में बस नरवाई/पराली शेष है, जिसे किसान कचरा समझकर जलाने के मूड में हैं। कहीं-कहीं नरवाई जलाने की सूचनाएं भी आ रही हैं।
गेहूं का भूसा बहुउपयोगी, मवेशियों का चारा
देखा जाए तो गेहूं फसल के दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है। यानी यदि एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूं उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी। इस भूसे से 30 किलो नत्रजन, 36 किलो स्फुर, 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होगा। इस भूसे को मवेशियों को दिया जा सकता है। इसके अलावा इस भूसे को जमीन में ही मिलाकर आने वाली फसल की खाद बतौर उपयोग लिया जा सकता है।
हार्वेस्टर के उपयोग से ज्यादा लगाते हैं आग
कृषि अधिकारी बताते हैं कि छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा, चौरई, चांद समेत आसपास के इलाकों में गेहूं की फसल काटने हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ा है। इससे खेतों में लम्बी डंठल की नरवाई रह जाने से किसान खेतों में आग लगा रहे हैं। जहां, तामिया, जुन्नारदेव, बिछुआ समेत अन्य इलाकों में जहां हाथों से फसल कटाई हो रही है, वहां नरवाई की समस्या नहीं है।
इनका कहना है…
गेहूं की फसल लेने के बाद खेतों में शेष नरवाई जलाने की समस्या से निपटने जिले में बोरलॉग संस्थान जबलपुर के वैज्ञानिकों की विकसित जीरो टिलेज पद्धति को आगे बढ़ाया जा रहा है। इसमें नरवाई को ट्रैक्टर की मदद से खेतों में मिला दिया जाता है। फिर वहीं ग्रीष्मकालीन मूंग की बोआई कर दी जाती है। इससे नरवाई की समस्या के समाधान के साथ नई फसल भी ली जा रही है।
– जितेंद्र कुमार सिंह, उपसंचालक कृषि