उल्लेखनीय है कि एेसी ही स्थिति सामान्य मरीजों की भी है। बता दें कि प्रतिदिन बाह्य रोगी विभाग में औसत 1000 से 1200 महिला-पुरुष जिला अस्पताल पहुंचते है, जिनके लिए एक मात्र सार्वजनिक शौचालय मुख्यद्वार क्रमांक-3 पर स्थित है। जहां भी दिव्यांगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। उल्लेखनीय है कि दिव्यांगों के हितो की रक्षा करने के लिए जिले में कई सामाजिक संगठन संचालित है तथा दावा करते है कि वह हमेशा दिव्यांगों के हितों की रक्षा करते है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
लटका दिया जाता है ताला –
अस्पताल परिसर अंतर्गत ट्रामा यूनिट में स्टाफ के लिए शौचालय है, जिसमें हमेशा ताला लटका रहता है। वहीं डॉक्टरों की सुविधा के लिए प्रबंधन ने तत्काल ड्यूटी रूम में नवीन सर्व सुविधायुक्त शौचालय का निर्माण कर लिया, लेकिन कायाकल्प अभियान के तहत पूर्व में जिला अस्पताल के निरीक्षण में आए डिप्टी डायरेक्टर के निर्देश के बावजूद दिव्यांगों के लिए शौचालयों का निर्माण नहीं कराया गया।
निगमायुक्त ने तुडवाया शौचालय – तत्कालीन कलेक्टर के निर्देश पर नगर निगम आयुक्त छिंदवाड़ा को जिला अस्पताल का प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किया गया था। उस समय निगमायुक्त ने मुख्यद्वार क्रमांक-२ के पास का शौचालय तुड़वा दिया था तथा ओपीडी कक्ष के समीप नया शौचालय का निर्माण कराया, लेकिन बाद में उसे भी तोड़ दिया गया।
नया निर्माण करने की नहीं अनुमति –
जिला अस्पताल का उन्नयन कार्य प्रगतिशील है तथा पुराने निर्माण कार्यों का डिस्मेंटल किया जाना है। इसके चलते परिसर में नया निर्माण कार्य की अनुमति नहीं है।
– डॉ. सुशील दुबे, आरएमओ