पीपल में देवी का वास का होता है आभास
इस सिद्ध स्थल से जुड़ी एक और रोचक बात यह है कि यहां मौजूद पीपल के वृक्ष में देवी का वास माना जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां रात में देवी भ्रमण करती हैं। इसका आभास उनकी पायल के घुंघरूओं की मधुर ध्वनि से होता है।
पातालेश्वर मंदिर एक मठ के रूप में जाना जाता है। कभी यहां नेपाल के पंडाओं और तांत्रिकों का जमावड़ा लगता था। ये लोग अंचल और प्रदेश में मौजूद अपने शिष्य और यजमानों की समस्या का निवारण के लिए यहां विभिन्न तांत्रिक क्रियाएं और अनुष्ठान संपन्न किया करते थे। इनमें से कुछ को यह मठ ऐसा भाया कि वे पूरी तरह से अंचल में ही बस गए।
मंदिर के पास एक बावली है। बताया जाता है कि बावली में गंगा गिरी बाबा ने मछलियां पाली थी। इनमें से कुछ मछलियों को सोने की नथ पहनाई गई थी जो लोगों को काफी आकर्षित करती थी। लोगों का कहना है कि इन मछलियों का शिकार करना पूर्वत: वर्जित था। बाबाजी की गैरमौजूदगी में किसी ने एक बार उनका शिकार कर लिया तो अगली सुबह वह मरा हुआ पाया गया।
मंदिर की देखरेख पीढ़ी दर पीढ़ी की जा रही है। मंदिर के मुख्य पुजारी पं. तिलक गोस्वामी ने बताया कि मैं आठवीं पीढ़ी का हूं। उन्होंने बताया कि अब तक नागा संप्रदाय से चार और गृहस्थ से चार लोग मंदिर की देखरेख कर चुके हैं।